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रजोहरण, पात्र आदि भाण्डोपकरण तथा सुई आदि अन्य किसी भी वस्तु को यतना से लेना और यतना से रखना यह भी संवर है ।
इन बीस कारणों से आत्मा आस्रव को रोकता है । अतः ये संवर हैं । संवर मोक्ष का कारण है । इसका शुद्ध साधना से संसार के बन्धन कट जाते हैं ।
निर्जरा तत्त्व के बारह भेद
१. अनशन तप
(उपवास आदि) २. ऊनोदरी तप
(भूख से कम खाना) ३. भिक्षाचरी तप (निर्दोष भिक्षा ग्रहण करना) ४. रसपरित्याग तप (सुस्वादु भोजन का त्याग) ५. कायक्लेश तप (वीरासन आदि करना) ६. प्रतिसंशीनता तप
(एकान्त शय्यासन) ७. प्रायश्चित्त तप (दोषों की आलोचनादि के
द्वारा शुद्धि) ८. विनय तप
(गुरु आदि की भक्ति) ६. वैयावृत्य तप (आचार्य आदि की सेवा) १०. स्वाध्याय तप (शास्त्र वाचन आदि) ११. ध्यान तप
(मन की एकाग्रता) १२. व्युत्सर्ग तप (शरीर के व्यापार आदि का त्याग)
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