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२. बादर एकेन्द्रिय के दो भेद, पर्याप्त और अपर्याप्त ३. द्वीन्द्रिय के दो भेद, पर्याप्त और अपर्याप्त
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४. त्रीन्द्रिय के दो भेद, पर्याप्त और अपर्याप्त ५. चतुरिन्द्रिय के दो भेद, पर्याप्त और अपर्याप्त ६. असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय के दो भेद, पर्याप्त और अपर्याप्त ७. संज्ञी पञ्चेन्द्रिय के दो भेद, पर्याप्त और अपर्याप्त
- व्याख्या एकेन्द्रिय जीवों के दो भेद हैं—सूक्ष्म और बादर । व्यवहार दृष्टि से सूक्ष्म का अर्थ-आँखों से न दीखने वाले जीव और बादर का अर्थ है...स्थूल जीव । परन्तु शास्त्र की दृष्टि से जिन्हें सूक्ष्म नाम कर्म का उदय हो, वे सूक्ष्म और जिन्हें बादर नाम कर्म का उदय हो, वे बादर । बादर जीव के शरीर भी अलग-अलग नहीं देखे जाते । किन्तु वे समुदाय रूप में ही देखे जाते हैं । सूक्ष्म जीव सम्पूर्ण लोक व्यापी हैं । बादर लोक के एक देश में हैं ।
आहार आदि छह पर्याप्तियों में जिसकी जितनी पर्याप्ति हों, वे पूर्ण हों तो पर्याप्त और पूर्ण न हों तो अपर्याप्त
जिसके मन होता है, वह संज्ञी कहलाता है और जिसके मन नहीं होता, वह असंज्ञी है ।
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