SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 23
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हैं, वे भाव प्राण हैं । क्योंकि वे आत्मा के निज स्वरूप हैं । जैसे कि ज्ञान, दर्शन, चारित्र और वीर्य । यहाँ पर प्रत्येक शब्द के साथ बल लगा है । बल का अर्थ है-शक्ति विशेष । छूने की शक्ति, चलने की शक्ति, सूंघने की शक्ति, देखने की शक्ति और सुनने की शक्ति । यह इन्द्रिय प्राण हैं । विचार करने की शक्ति, बोलने की शक्ति, चलने-फिरने आदि की शारीरिक शक्ति । ये तीन योग रूप प्राण जीव जिस शक्ति से बाहर की वायु को अन्दर खींचता है और अन्दर की वायु को बाहर फेंकता है, वह क्रमशः श्वास और उच्छ्वास हैं ।। जिस शक्ति के अस्तित्व से जीव जीवित रहता है, जिसके असद् भाव से जीव मर जाता है, वह आयुष्य प्राण है । दशों प्राणों में आयुष्य प्राण सबसे मुख्य है । इसके अभाव में दूसरे प्राणों का कोई महत्त्व नहीं रहता । किस जीव में कितने प्राण हो सकते हैं ? इसके समाधान में शास्त्र में कहा गया है, कि एकेन्द्रिय जीव में चार प्राण हैं-स्पर्शन इन्द्रिय, काय, श्वासोच्छवास और आयुष्य । द्वीन्द्रिय जीव में छह प्राण हैं-चार पूर्वोक्त तथा रसन-इन्द्रिय और वचन । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003421
Book TitlePacchis Bol
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1996
Total Pages102
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy