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श्वास और उच्छ्वास योग्य पुद्गलों को ग्रहण करता है
और छोड़ता है। __भाषा पर्याप्ति—जिस शक्ति के द्वारा जीव भाषा योग्य भाषा वर्गणा के पुद्गलों को ग्रहण करके भाषा रूप में परिणत करके छोड़ता है ।
मनःपर्याप्ति—जिस शक्ति के द्वारा जीव मनोयोग्य मनोवर्गणा के पुद्गलों को ग्रहण करके मन रूप में बदलता और छोड़ता है ।
किन जीवों के कितनी पर्याप्ति होती हैं ? एकेन्द्रिय जीव के भाषा और मन को छोड़कर शेष सभी हैं । विकलेन्द्रिय (द्वीन्द्रिय से चतुरिन्द्रिय तक) और असंज्ञी पंचेन्द्रिय के मन को छोड़ कर शेष समस्त पर्याप्ति हैं । संज्ञी पंचेन्द्रिय जीव के छहों पर्याप्ति होती हैं ।
संसारी जीवों में पर्याप्ति कम-से-कम चार और अधिक-से -अधिक छह होती हैं । कोई भी जीव जब अपर्याप्ति-दशा में मरता है, तब वह कम-से-कम प्रथम की तीन पर्याप्ति तो अवश्य ही पूरी करता है ।
पर्याप्ति के आधार पर जीवों के दो भेद किये हैंपर्याप्त और अपर्याप्त । जिस जीव ने स्व-योग्य पर्याप्ति को पूर्ण कर लिया है, वह पर्याप्त कहा जाता है ।
अपर्याप्ति वह है, जो स्व-योग्य पर्याति को पूर्ण नहीं कर पाया है।
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