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ब्रह्मचर्य दर्शन
का केन्द्र है । यह शक्ति हमारे प्रत्येक कार्य के साथ-साथ रहती है। शरीर पर भी इसका बड़ा भारी प्रभाव पड़ता है । आसन और प्राणायाम की साधना में इच्छाशक्ति का ही प्राधान्य रहता है । जब तक इच्छा नहीं होती, तब तक कोई कार्य उत्साह और उमंग के साथ नहीं होता । आचरण, चरित्र और स्वास्थ्य के सुधारने में इच्छाशक्ति का बहुत बड़ा हाथ है । इच्छा-शक्ति से हृदय और मांस-पेशियों की गति को घटाया-बढ़ाया जा सकता है । ध्यान में स्थित होकर मनुष्य अपनी इच्छा-शक्ति से, अपने रुधिर-प्रवाह को एवं अपनी हृदय-गति को भी रोक सकता है और फिर उसे चालू कर सकता है । इच्छा-शक्ति और संकल्प-शक्ति से हीन व्यक्ति यौवन-काल में भी बूढ़ा हो जाता है । इसके विपरीत इच्छा-शक्ति और संकल्प-शक्ति से बूढ़ा मनुष्य भी युवक एवं तरुण बन सकता है। प्रश्न है कि इस इच्छा-शक्ति को कैसे प्राप्त किया जाए ? यह संकल्प-शक्ति ध्यान-योग से ही साधक अपने जीवन में प्राप्त करके महान बन सकता है।
कुण्डले नाभिजानामि, नाभिमानामि कङ्कणे । नूपुरे त्वभिजानामि, नित्यं पादाम्जवन्दनात् ।।
-पद्मपुराण मैं न तो (सीता) के कुण्डलों को पहचानता हूँ और न कंकणों को ही । प्रतिदिन चरणों में वन्दन करने के कारण, मैं तो केवल नूपरों को ही पहचानता हूँ।
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