SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 188
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्राध्यात्मिक ब्रह्मचर्य यह घटना भारत के प्राचीन समृद्ध नगर पाटलिपुत्र की है। योगी स्थूल भद्र अपने योग-साधना काल में पूर्व बचन बद्धता के कारण वर्षावास के लिए पटना बाए । इस समृद्ध नगर की तत्कालीन रूप-सम्पन्न, बैभव-सम्पन्न और विलास - सम्पन्न पूर्व प्रेयसी 'कोशा' वेश्या को प्रतिबोध देने का, उसे वासनामय जीवन से निकाल कर सदाचार के मार्ग पर लगाने का दिव्य संकल्प उनके अन्तस् में ज्योतिर्मय हो रहा था । यद्यपि यह संकल्प अपने में परम पावन और परम पवित्र था, किन्तु उसे साकार करना, सहज और आसान न था। आग से खेलकर भी आग से दग्ध न होना, भयङ्कर प्रसुप्त विषधर को जगाकर भी उससे बच निकलना और अपनी भुजाओं के बल से विशाल महासागर को पार कर सकना जैसे सम्भव नहीं है, वैसे ही इस पवित्र विचार को साकार करना सम्भव न था, किन्तु उस योगी ने अपनी संकल्प शक्ति से अपनी ( Will power ) से असम्भव को भी सम्भव बना दिया। कोशा वेश्या के घर, जहाँ पर मादक मेघमाला की वर्षा की रिमझिम में मधुर सङ्गीत की स्वर लहरी, नृत्य करते समय पायलों की भंकार, और विविध प्रकार की विलासी भाव भंङ्गिमा चल रही हो, ऐसे विलासमय एवं वासनामय वातावरण में भी जो योगी अपने योग में स्थिर रह सका, अपने ध्यान में अविचलित रह सका और अपनी ब्रह्मचर्य की साधना में अखण्डित रह सका, निश्चय ही वह स्थूलभद्र अपने युग का विशाल एवं विराट अपराजित काम-विजेता वीर पुरुष था । उसके ब्रह्मचयं की साधना को खण्डित करने के लिए कोशा वेश्या का एक भी प्रयत्न सफल नहीं हो सका । अन्त में पराजित होकर उसने जिज्ञासु साधक की भाषा में कहा, शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम् । " मैं आपकी शिष्या हूँ, आप मुझे सन्मार्ग बतलाकर मेरे जीवन का उद्धार "करें ।" एक योगी के समक्ष, विलासवती कोशा वेश्या का यह आत्म-समर्पण, निश्चय ही, वासना पर संयम की विजय है, कामना पर शुभ संकल्प का जयघोष है और एक योगी की अमूर्त दृढ़ इच्छा शक्ति का साकार रूप है । अन्त में कोशा वेश्या अपने विलास और वासनामय जीवन का परित्याग करके, आध्यात्मिक जीवन अंगीकार करती है और अब्रह्मचर्य के पाप से हटकर, ब्रह्मचर्य की पुष्यमयी शरण में, पहुँच जाती है ! भारतीय संस्कृति में ब्रह्मचर्य को जितना गौरव और महत्व मिला है, उतना अन्य किसी व्रत और नियम को नहीं मिला । यही कारण है कि भारतीय संस्कृति की तीनों धाराओं में - वैदिक, जैन और बौद्ध परम्परा में, कुछ ऐसे विशिष्ट ब्रह्मचर्य के साधक हुए हैं, जिन्होंने अपनी अध्यात्म साधना के बल पर सम्पूर्ण मानव जाति के समक्ष, एक महान आदर्श प्रस्तुत किया था। जिनका उल्लेख हम ऊपर कर चुके हैं । इन जीवन-गाथाओं से भली भाँति यह प्रमाणित हो जाता है कि Jain Education International १७ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003419
Book TitleBramhacharya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1982
Total Pages250
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy