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________________ प्राध्यात्मिक बाह्मचर्य १७७ कवि कालिदास ने अपने महाकाव्य 'कुमार संभव' में परमयोगी शङ्कर के जिस तप का उग्र वर्णन किया है, वह पाठक और श्रोता को निश्चय ही चकित कर देने वाला है। परन्तु अन्त में महाकवि कालिदास ने यह दिखलाया कि उस योगी का वह योग, और उस तपस्वी का वह तप, गौरी के सौंदर्य को एक बार देखने मात्र से ही विलुप्त हो गया। इस जीवन-गाथा से यह आभास मिलता है और पाठक यह निर्णय निकाल लेता है कि ब्रह्मचर्य की साधना असम्भव है। मनुष्य इसकी साधना में सफलता प्राप्त नहीं कर सकता। परन्तु महाकवि भारवी ने अपने 'किरातार्जुनीय' महाकाव्य में अर्जुन के तप और योग का जो विशद वर्णन किया है, वह पाठक को चकित और स्तब्ध कर देने वाला है। महाभारत के युद्ध से पूर्व, शिव का वरदान पाने के लिए अर्जुन जब योग साधना में लीन हो जाता है, तब उसकी योग-साधना की परीक्षा के लिए अथवा उसे साधना से भ्रष्ट करने के लिए, इन्द्र अनेक सुन्दर अप्सराओं को भेजता है और वे मिलकर, अपने मधुर संगीत, सुन्दर नृत्य, और मादक हाव-भावों से अर्जुन के साधनालीन चित्त को विचलित करने का पूरा प्रयत्न करती है, किन्तु उन्हें अपने उस कार्य में तनिक भी सफलता प्राप्त नहीं होती। वीर अर्जुन के जीवन की यह घटना ब्रह्मचर्य के साधकों के लिए एक दिव्य आलोक बन गई है। इसका फलितार्थ यह निकलता है कि ब्रह्मचर्य की साधना करने वालों ने उसे जो असम्भव समझ लिया है, वह अस. म्भव तो नहीं, पर कठिनतर एवं कठिनतम अवश्य है । ब्रह्मचर्य की साधना को हमारे प्राचीन शास्त्रों में जो कठिनतम कहा गया है, उसका अर्थ केवल इतना ही है कि ब्रह्मचर्य की साधना प्रारम्भ करते समय, चित्त को विशुद्ध रखने का सतर्कता के साथ पूरा प्रयत्न किया जाना चाहिए । यदि कभी चित्त में जरा भी मलिनता का प्रवेश हो जाता है, असावधानता की कुज्झटिका से ज्ञानदीप का प्रकाश धंधला हो जाता है, तब यह साधना कठिनतम ही नहीं, अपितु असम्भव भी हो जाती है । अतः इस साधना के मार्ग पर चलने वाले साधक के लिए यह संकेत दिया गया कि, वह अपने मन और मस्तिष्क को सदा पवित्र रखे । बौद्ध-शास्त्रों में भी ब्रह्मचर्य की साधना के सम्बन्ध में, अनेक प्रकार के रूपक एवं आख्यान उपलब्ध होते हैं, जिनके अध्ययन एवं परिशीलन से यह ज्ञात होता है कि बौद्ध साधक इस साधना को कितना महत्व देते थे और अपनी साधना की सफलता के लिए कितना सत्प्रयत्न करते थे। स्वयं भगवान बुद्ध के जीवन को वह घटना हमें कितनी पवित्र प्रेरणा देती है, जिसमें यह बतलाया गया है कि जब बुद्ध साधना कर रहे थे, बोधि प्राप्त करने के लिए तप कर रहे थे, उस समय मार ( काम ) उन्हें साधना से विचलित करने के लिए मादक तथा रंगीन वातावरण उनके सामने प्रस्तुत करता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003419
Book TitleBramhacharya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1982
Total Pages250
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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