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________________ ७२ / अस्तेय दर्शन चाहिए, परन्तु वह उससे कम देता है। वह वायदा करता है कि इस भाव में दूँगा; और जब देता है तो कम तोलता है। तीसरा आदमी बाँट भी खोटे रखता है। देने के लिए दूसरे और लेने के लिए दूसरे रख छोड़ता है। देते समय छोटे और घिसे हुए बाँटों का उपयोग करता है और लेते समय बड़े और भारी बाँटों का उपयोग करता है। इसी प्रकार नाप भी छोटे बड़े रखता है । चौथा मनुष्य है जो रात्रि में, गलती से आये हुए जाली सिक्कों को अनजान बच्चों या बहिनों में चला देता है। पाँचवाँ आदमी 'ब्लेक मार्केट' करता है। 1 छठा मनुष्य एक बड़ा सट्टेबाज है। वह अपनी पूँजी के बल से बाजार के भावों को एकदम घटा-बढ़ा देता है। वह एकदम खरीदता जाता है और भाव बढ़ा देता है और फिर बेचते-बेचते भाव को गिरा देता है और बाजार में उथल-पुथल मचा देता है और हजारों छोटे व्यापारियों की जिन्दगी को खत्म कर देता है। यहाँ व्यावर में तो इतना ज्यादा असर नहीं पड़ता है, किन्तु बम्बई और कलकत्ता जैसे बड़े शहरों में बड़े-बड़े सटोरिये ऐसा ही किया करते [ प्रश्न यह है कि इन सब रूपों में चोरी समझी जाय या नहीं ? चोरी का स्वरूप अदत्तादान बतलाया गया है, अर्थात् किसी की वस्तु उसके दिए बिना ले लेना चोरी है और ऊपर जो रूप बतलाये गये हैं, उनमें साधारणतया इस प्रकार का आदान-समझ में नहीं आता। अतएव स्वभावतः बहुत लोगों के मन में यह आशंका उत्पन्न होती है कि इन्हें अदत्तादान समझा जाय या नहीं ? मगर जहाँ तक ज़ैनशास्त्रों का सम्बन्ध है और उनकी जानकारी का प्रश्न है, यह सब रूप चोरी के ही अन्तर्गत हैं। जैन शास्त्रों में स्पष्ट कहा है'स्तेनप्रयोग- तदाहृतादान-विरुद्धराज्यातिक्रम-हीनाधिकमानोन्मान-प्रतिरूपक व्यवहारा: ।' तत्त्वार्थसूत्र | चोर को चोरी करने का उपाय बतलाना, चोर द्वारा चुराई हुई चीज को ग्रहण करना, राजकीय मर्यादा का उल्लंघन करना, छोटे-बड़े नाप-तोल रखना और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003418
Book TitleAsteya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Vijaymuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages152
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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