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________________ ४८ / अस्तेय दर्शन नहीं समझते । एक अबोध बालक पुस्तक की सुन्दरता से आकर्षित होकर उसे लेना चाहता है और आपको मालूम है कि एक खिलौने से अधिक उसके लिए उस पुस्तक का कोई उपयोग और मूल्य नहीं है ; और दूसरा उसे पढ़ने के लिए, उससे लाभ उठाने के लिए लेना चाहता है, किन्तु आप उसे न देकर अबोध बालक को ही वह पुस्तक दे देते हैं तो क्या वास्तव में आप ज्ञानदान कर रहे हैं ? केवल दे देना ही दान नहीं है। कम से कम जैनधर्म में दे देना मात्र ही प्रशस्त दान नहीं माना गया है। हजारों वर्षों से चला आने वाला हमारा जो साहित्य है, उससे मालूम होता है कि देने के पीछे विवेक और सद्बुद्धि भी आवश्यक है। देते समय इस बात का भी ध्यान रखना होता है कि वह किसे मिल रहा है और वह उसका क्या उपयोग करेगा? इस दृष्टि से उस पुस्तक का सच्चा अधिकारी वह विद्यार्थी या जिज्ञासु था, जो पढ़ रहा है। वह उसे पढ़ता और उससे आदर्श ग्रहण करता। पर उसे न देकर आप एकमात्र खिलौना समझने वाले अबोध बालक को दे देते हैं । वह उसका सदुपयोग नहीं कर सकता । अतः यह आपका दान नहीं है किन्तु चोरी है। आप कहेंगे, यह चोरी कैसे है ? हमने तो उलटी अपनी वस्तु दी है, फिर चोरी कैसी ? मगर कभी-कभी ऐसा ही उलटफेर हो जाया करता है। आप घर की चीज देते हैं और ममता उतारते हैं, फिर भी यह चोरी ही हो जाती है। क्योंकि किसी के अधिकार का अपहरण करना क्या चोरी नहीं है ? इस प्रकार के दान देने को 'चोरी' शब्द से कहना-सुनना आपको अटपटा लगता है। यदि चोरी' के बदले ‘गुनाह' शब्द का प्रयोग किया जाय तो आप ठीक समझ सकते हैं और अपनी भूल को स्वीकार करने के लिए भी तैयार हो सकते हैं । उसे चोरी कहते हैं तो आप गड़बड़ में पड़ जाते हैं। अच्छा, तो आप एक का अधिकार दूसरे को दे देना गुनाह ही समझ लीजिए। पर साथ ही वह विचार भी तो कीजिए कि इस गुनाह को आप किसी पाप में शामिल करते हैं या नहीं ? अगर शामिल करते हैं तो किस पाप में? मैंने तो इसे चोरी में शामिल किया है। क्योंकि एक के अधिकार की वस्तु उससे छीनी गई है और दूसरे को दे दी गई है। अधिकार छीनना, आध्यात्मिक भाषा में चोरी है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003418
Book TitleAsteya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Vijaymuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages152
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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