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________________ अस्तेय दर्शन / ३ रहे हैं और शिकायत करते हैं कि मिठास नहीं आ रही है ! अरे भाई, मुँह में डाले बिना मिसरी की मिठास कैसे आएगी ? इसी प्रकार शास्त्रों का चिन्तन, मनन और विश्लेषण करने पर भी अगर रस न आए तो विचार किया जा सकता है, किन्तु हमारे आगमों में तो सभी प्रश्न सुलझे पड़े हैं। हमारी उलझन तो समझ में है, शास्त्रों में नहीं । हाँ, तो औपपातिक सूत्र में स्पष्ट वर्णन आता है कि अगारधम्मं दुवालस्सविहं आइक्खड़ तंजहा पंच अणुव्वयाइं तिण्णि गुणव्वयाई, चत्तारि सिक्खावयाइं । पंच अणुव्वयाई तंजहा-थूलाओ पाणाइवायाओ वेरमणं, थूलाओ मुसावायाओ वेरमणं, थूलाओ अदिण्णादा ओवेरमणं, सदारसंतोसे, इच्छापरिमाणं । तिण्णि गुणव्वयाई तंजहा अणत्थदंडवेरमणं, दिसिव्क्यं, उवभोग-परिभोग परिमाणं । चत्तारि सिक्खावयाइं तजहा- सामाइयं, देसावगासियं पोसहोववासे, अतिहिसंबिभागो । अपच्छिम मारणांतिया संलेहणां झूसणाराहणाए । अयमउसो ! अगारसमाईए धम्मे पण्णत्ते एयस्स धम्मस्स सिक्खाए उवट्ठिए समणोवास समणोवासियावा, विहरमाणे आणाए आराहए भवंति । १३४ धर्म देशनाधिकार । गृहस्थ के अणुव्रत आदि बारह व्रत हैं, यही सामायिक है और यह सामायिक, सामायिक चारित्र का अंग है। अब आप विचार कर सकते हैं कि सामायिक चारित्र क्या केवल दो घड़ी के लिए ही होता है ? सामायिक की काल मर्यादा : जीवन पर्यन्त कहा जा सकता है कि श्रावक की सामायिक यदि निरन्तर चलती रहती है, तो फिर दो घड़ी तक सामायिक करने की जो परम्परा चल रही है, वह क्या गलत है ? यह परम्परा क्यों चली ? इस प्रश्न का उत्तर यह है कि, सुबह-शाम दो घड़ी तक की जाने वाली सामायिक विशिष्ट सामायिक है और उस सामायिक को करने का विधान तो मुनियों के लिए भी था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003418
Book TitleAsteya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Vijaymuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages152
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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