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________________ अस्तेय और भ्रष्टाचार ८ भारत की वर्तमान स्थिति - परिस्थिति पर अपने विचार प्रस्तुत करने के लिए मुझसे कहा गया है। वर्तमान दर्शन के साथ ही अतीत और भविष्य के चित्र भी मेरी कल्पना के आँखों के समक्ष उभर कर आ जाते हैं । इन चित्रों को वर्तमान के साथ सम्बद्ध किए बिना वर्तमान- दर्शन अधूरा रहेगा, भूत और भावी फ्रेम में मढ़कर ही वर्तमान के चित्र को सम्पूर्ण रूप से देखा जा सकता है। स्वर्णिम चित्र : अध्ययन और अनुभव की आँखों से जब हम प्राचीन भारत की ओर देखते हैं, तो एक गरिमा-मंडित स्वर्णिम चित्र हमारे समक्ष उपस्थित हो जाता है। उस चित्र की स्वर्ण रेखाएँ पुराणों और स्मृतियों के पटल पर अंकित हैं, रामायण और महाभारत काल की तूलिका से संजोई हुई हैं। जैन आगमों और अन्य साहित्य में छविमान हैं। बौद्ध त्रिपिटकों में भी उसकी स्वर्ण आभा यत्र-तत्र बिखरी हुई है। भारत के अतीत का वह गौरव केवल भारत के लिए ही नहीं, किन्तु समग्र विश्व के लिए एक जीवन्त आदर्श था। अपने उज्ज्वल चरित्र और तेजस्वी चिंतन से उसने एक दिन सम्पूर्ण संसार को प्रभावित किया था। उसी व्यापक प्रभाव का चित्र मनु की वाणी से ध्वनित हुआ था एतद्देशप्रसूतस्य सकाशादग्रजन्मनः । स्वं स्वं चरित्रं शिक्षेरन् पृथिव्यां सर्वमानवाः ॥ "इस देश में जन्म लेने वाले चरित्र - सम्पन्न विद्वानों से भूमण्डल के समस्त मानव अपने-अपने चरित्र - कर्त्तव्य की शिक्षा ले सकते हैं।" मनु की यह उक्त कोई गर्वोक्ति नहीं, किन्तु उस युग की भारतीय स्थिति का एक यथार्थ चित्रण है; सही मूल्याकंन है। भारतीय जनता के निर्मल एवं उज्ज्वल चरित्र के प्रति श्रद्धावनत होकर यही बात पुराणकार महर्षि व्यास देव ने इन शब्दों में दुहराई थी - भूमि - भागे । गायन्ति देवा : किल गीतकानि, धन्यास्तु ये भारतस्वर्गापवर्गास्पदमार्ग-भूते, भवन्ति भूयः पुरुषाः सुरत्वात् ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003418
Book TitleAsteya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Vijaymuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages152
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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