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प्रवचन-माता 'समिति' का अर्थ है-'सम्यक् प्रवृत्ति।' 'गुप्ति' का अभिप्राय है-'अशुभ से निवृत्ति।'
माँ क्या करती है? और क्या चाहती है? वह अपने बेटे को सतत सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है। वह गलत मार्ग पर कभी न चले, इसका ध्यान रखती
पाँच समिति और तीन गुप्ति को 'अष्ट प्रवचन-माता' कहा गया है। वह माँ की तरह साधक की देखभाल करती है। साधक विवेकपूर्वक गमनागमन करे । विवेक और संयम से बोले। मर्यादा के अनुसार आहार ग्रहण करे। अपने उपकरणों का सावधानी से उपयोग करे। उन्हें अहिंसक और व्यवस्थित रीति से रखे। मूल-मूत्र आदि के उत्सर्ग के लिए उचित स्थान की खोज करे। ये पाँच समितियाँ हैं।
मन से असत् विचार न करे, असत् चिन्तन न करे। वचन से असत्य तथा कटु भाषा न बोले। काया से असत् व्यवहार एवं आचरण न करे ।
चलने के समय, बोलने के समय तथा अन्य किसी भी कार्य को करते समय उसकी ओर ही उन्मुख रहे, एकनिष्ठ रहे, और उस समय इधर-उधर के अन्य सब विकल्प छोड़ दे।
ये पाँच समितियाँ और तीन गुप्तियाँ पाँच महाव्रतों को सुरक्षित रखने के लिए हैं। इनका पालन साधु के लिए नितान्त आवश्यक है। और कुछ भी न करे, केवल पाँच समिति और तीन गुप्ति का विशुद्ध रूप से पालन करे, तो भी साधक अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है।
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