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बहुश्रुत-पूजा जो स्वयं को और दूसरों को बन्धनों से मुक्ति का
मार्ग दिखा दे, वह शिक्षा है। शिक्षाशील विद्यार्थी अगर क्रोध करता है, आलस्य करता है, यदि वह अहंकारी है, रोगी है, दूसरों के दोषों को देखता है, दूसरों का तिरस्कार करता है, मित्रों की बुराई करता है, प्राप्त साधनों का साथियों में समान विभाजन नहीं करता है, वह ठीक ज्ञानार्जन नहीं कर सकता है, विद्याध्ययन नहीं कर पाता है । किन्तु जो व्यर्थ की बातों को छोड़ देता है, जो नम्र और सुशील है, जो विद्वान् होकर भी अहंकार नहीं करता है, दूसरों की कमजोरियों का मजाक नहीं उड़ाता है, जो गाली गलौज और हाथापाई जैसे अभद्र व्यवहारों से परे है, वह शिक्षार्थी बहुश्रुत होता है। बहुश्रुत का अर्थ है-'श्रुत ज्ञानी ।'
यद्यपि बहुश्रुत विषय-भेद से अनेक प्रकार के होते हैं, तथापि वे सभी पूजा के योग्य होते हैं। वे सूर्य और चांद की तरह तेजस्वी होते हैं। वे सागर की भाँति गम्भीर होते हैं। वे साहसी और दृढ़ होते हैं। वे किसी से जीते नहीं जाते। उनकी ज्ञानसम्पदा किसी से कम नहीं होती है। उनकी शिक्षा का उद्देश्य स्वयं को मुक्त करना और दूसरों को भी मुक्त कराना होता है। इस अध्ययन में १५ उपमाएँ बहुश्रुत के लिए दी हैं।
विद्या का उद्देश्य, विद्यार्थी की आचार-संहिता और विद्वान् की योग्यता के सम्बध में यह एक महत्त्वपूर्ण वैज्ञानिक विश्लेषण है।
आज के तथाकथित विद्वान् और विद्यार्थी अगर थोड़ा सा भी इस ओर लक्ष्य दे सकें, तो आज शिक्षा-जगत् की बहुत कुछ समस्याओं का समाधान निकल सकता है।
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