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________________ s [६० । उपासक आनन्द जैसे लक्ष्मी का कम हो जाना एकान्त पाप नहीं है, उसी प्रकार लक्ष्मी का आना भी एकान्त पुण्य की बात नहीं है। पाप के उदय से भी आती है और पुण्य के उदय से भी आती है। ____ कल्पना कीजिए, एक आदमी कहीं जा रहा है। जाते-जाते उसे रास्ते में मोहरों की थैली मिल गई। अनायास ही मिल गई और उसने उठा ली। तो वह पाप के उदय से मिली या पुण्य के उदय से मिली ? वह आदमी उस थैली को उठाकर घर ले गया और मोहरों को इस्तेमाल करना शुरू किया। और फिर जाँच हुई तो पकड़ा गया और जेलखाने गया । मानना होगा कि वह थैली पाप के उदय से मिली और जेलखाने जाना और वहाँ कष्ट पाना उसी पाप के उदय का फल है। एक डाकू डाका डालता है और लोगों की लक्ष्मी लूट लेता है। उसे जो सम्पत्ति मिलती है सो पाप के उदय से या पुण्य के उदय से? तात्पर्य यह है कि इस विषय में बहुत गलतफहमियाँ होती हैं। हमें निरपेक्ष भाव से, मध्यस्थ भाव से, शान्तिपूर्वक सोचना चाहिए। तगाई और चोरी न करके, न्याययुक्त वृत्ति से जो लक्ष्मी आती है, वही पुण्य के उदय से आती है और वह लक्ष्मी नीति और धर्म के कार्यों में व्यय होती है। इतिहास बतलाता है कि दिन में एक व्यक्ति राजगद्दी पर बैठा और रात में कत्ल कर दिया गया। तो कत्ल कर दिया जाना पाप का उदय है और उसका कारण राजगद्दी मिलना है। अतएव उसे पाप के उदय से राजगद्दी मिली जो उसके कत्ल का निमित्त बनी। एक बात और पूछनी है। किसी के लड़का होता है तो किस कर्म के उदय से? और लड़की होती है तो किस कर्म के उदय से ? लड़का होता है तो लोग कहते हैं-पुण्य के उदय से हुआ और लड़की पैदा हो गई तो कहेंगे कि पाप का उदय हो गया! प्रश्न गंभीर है और लोगों की धारणा है कि पुण्य के उदय से लड़का और पाप के उदय से लड़की होती है। ___ चाहे हजारों वर्षों से आप यही सोचते आए हों, किन्तु मैं इस विचार को चुनौती देता हूँ कि आपका विचार करने का यह ढङ्ग बिल्कुल गलत है। मिथिला के राजा कुम्भ के यहाँ मल्ली कुमारी का जन्म हुआ। वह पाप के उदय से हुआ या पुण्य के उदय से हुआ? और राजा उग्रसेन के यहाँ कंस का जन्म पाप के उदय से अथवा मुण्य के उदय से हुआ? श्रेणिक के यहाँ कोणिक ने जन्म लिया, सो पाप के उदय से या पुण्य के उदय से ? मतलब यह है कि एकान्त रूप में लड़का-लड़की के जन्म को पुण्य-पाप का फल नहीं माना जा सकता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003416
Book TitleUpasak Anand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Vijaymuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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