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________________ |५२ । उपासक आनन्द उस हाथ की तरफ है। एक आगे है, तो एक पीछे है। लड्डुओं की प्रभावना जो बँट रही है। मोदक प्रभावना बड़ी भीड़ सहज ही एकत्रित कर देती है। __यहाँ भी तो लड्डुओं की प्रभावना बटने वाली है। अजी, लड्डुओं की क्या, अमृत की प्रभावना होने वाली है। महाप्रभु महावीर के मुखचन्द्र से अमृत की वर्षा होने वाली है। लड्डू तो थोड़ी देर तक मुँह मीठा रखता है, परन्तु यह अमृत तो ध्रुव माधुर्य पैदा करने वाला है। सदा के लिए तृप्ति प्रदान करने वाला है। इस अमृत को कौन विवेकवान् नहीं पीना चाहेगा ? कौन अपने परिवार को उससे वंचित रखना पसन्द करेगा? बस, आनन्द अपने परिवार के साथ रवाना हुआ। आनन्द सब को आनन्द में सम्मिलित करके चला है। इसे कहते हैं, सामूहिक जीवन और सामूहिक भावना। परिवार में सब समान योग्यता वाले नहीं होते। हाथ की पाँचों उँगलियां बराबर नहीं होतीं, उसी प्रकार परिवार में भी सब समान नहीं होते। आप धर्म-कार्य में हिस्सा लेते हैं। सामायिक करते हैं, और दर्शन करते हैं, यह ठीक है, किन्तु आपको अपने परिवार में सामूहिक रूप से चेतना जागृत करनी चाहिए। छोटी या बड़ी जाति के जितने भी सदस्य हैं, सब को प्रेरणा देनी चाहिए। यह तो धर्म का क्षेत्र है। यहाँ सब एक ही बिरादरी के हैं केवल मानव! धर्मस्थान में सब भाई-भाई हैं। सभी एक पिता की सन्तान हैं। भगवान् महावीर सभी के पिता हैं, और सब उन्हीं की सन्तान हैं। भाई-भाई में जाति-पाँति का प्रश्न क्या ? छोटे-बड़े की कल्पना कैसी ? यहाँ आकर भी अगर आप अपने को ओसवाल और अग्रवाल समझते रहे, तो आपका उद्धार फिर कहाँ होगा ? आपका यह बहिर आत्म-भाव किस जगह मिटेगा? अपने को चिदानन्दमय समझने की कौन-सी जगह होगी? भगवान् ने तो कहा है 'नदीसइ जाति-विसेस कोई।' अर्थात् मनुष्य-मनुष्य सब एक हैं, और एक सरीखे हैं। उनमें जातिगत कोई विशेषता नहीं दीखती। किसी के चेहरे को देखकर आप नहीं पहचान सकते, कि अग्रवाल है या ओसवाल है; ब्राह्मण है या क्षत्रिय है ? मनुष्य-मनुष्य में कुछ अन्तर अवश्य होता है, और किसी भी एक मनुष्य का दूसरे मनुष्य के साथ हूबहू हुलिया नहीं मिल सकता, तथापि वह अन्तर जाति का अन्तर नहीं है। घोड़े और गाय को देखते ही जैसे उनकी जाति का पता लग जाता है, उस प्रकार मनुष्य को देखकर नहीं जाना जा सकता, कि यह ओसवाल है या अग्रवाल है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003416
Book TitleUpasak Anand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Vijaymuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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