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________________ गणिषु प्रमोदम्॥३ नहीं करते थे। इस तथ्य को सिद्ध करने वाले अनेक उदाहरण हमारे शास्त्रों में आते एक स्थान पर आचार्य हरिभद्र ने एक उदाहरण दिया है। वह बड़ा सुन्दर है, और विचारणीय है। वह कुछ रूपान्तर के साथ इस प्रकार है___ एक युवक था। उसने किसी साधु या योगी का अपमान किया। अपने अपमान से योगी क्रुद्ध हो गया ? उसने कहा-मूर्ख, बैल कहीं का! और शाप दे दिया गया और वह बैल बन गया। ____ जब बैल बने हुए युवक की पत्नी ने देखा कि पति बैल बना दिए गए हैं, तो वह उस बैल को ही पतिवत् समझ, उसके गले में रस्सा बाँध कर जंगल में चराने ले जाती और कभी-कभी रो लेती। इस प्रकार कुछ दिन बीत गए। ___ एक दिन स्त्री बैल को चरा रही थी और पास के एक वृक्ष की छाया में बैठ कर रो भी रही थी। संयोगवश उधर से देव-देवी निकले। देवी का हृदय कोमल था। स्त्री का दुःख देख कर वह पिघल गया। उसने सोचा-बेचारी बड़ी दुखिया है। इसका दु:ख दूर हो जाए तो अच्छा है और उसने देव के सम्मुख उसका दु:ख दूर करने की इच्छा प्रकट की। देव ने कहा-आखिर क्या दुःख है इसको? देवी ने दःख दूर करने के लिए आग्रह और अनुनय करते हुए कहा-यह तो मैं नहीं जानती, किन्तु यह रो रही है, इससे मालूम होता है, कि कोई न कोई दारुण दुख है इसे। देव ने कहा- तुम्हें पता नहीं। इसका पति बड़ा घमण्डी था। एक योगी ने आवेश में आकर इसे बैल बना दिया। इसकी स्त्री अब भी इसे पति समझती है और सेवा करती है। देवी की दया और भी बढ़ गई। बोली, इसकी जिन्दगी तो बर्बाद हो जाएगी। देवी का हृदय व्याकुल हो गया। उसने फिर कहा-आपके पास शक्ति है। वह इस समय काम न आई तो कब काम आएगी? अनुग्रह करके इसे फिर से आदमी बना दीजिए। देव ने कहा, मुझमें यह शक्ति नहीं है। इस पर बैल बनाने की विद्या का प्रयोग किया गया है। उसकी काट इसे आदमी बना सकती है। देवी-तो काट क्या है। देव-इसी वृक्ष के आस-पास जो घास है, उसमें एक ऐसी जड़ी है, कि उसे यह खाले तो मनुष्य बन जाए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003416
Book TitleUpasak Anand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Vijaymuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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