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________________ २४ | उपासक आनन्द और दूसरों को भी तारा। वे राग, द्वेष और विषय, विकार को स्वयं जीत कर जिन बने और दूसरों को भी जिन बनाया। उन्होंने, स्वयं अप्रतिहत बोध पाया और दूसरों को भी बोध दिया। स्वयं मुक्त हुए और दूसरों को मुक्त होने का मार्ग सुझाया। ___ तो, ऐसे श्रमण भगवान् महावीर एक शुभ दिन वाणिज्यग्राम नगर में पधारे। भगवान् किसी नगर में पधार जाएँ और जनता सोई पड़ी रहे, दुकान वाले दुकानदारी में लगे रहें और बहिनें चूल्हा सँभाले बैठी रहें, यह नहीं हो सकता था। भगवान् के पधारते ही नगर में हलचल मच गई। जनता के हृदय में आनन्द की हिलोरें उठने लगीं। बड़े-बड़े महलों में भी और मामूली झौंपड़ियों में भी जागृति-सी आ गई। बालक और बूढ़े, नर और नारी सभी अपना-अपना काम, छोड़कर प्रभु के दर्शन के लिए रवाना हुए, और उनके निकट जाकर बैठ गए तो एक बड़ी भारी सभा जुड़ गई। - बात भी ठीक ही थी। आपको ही अगर मालूम हो जाए कि ब्यावर में या ब्यावर से दस-बीस-तीस कोस की दूरी पर किसी खेत में कल्पवृक्ष उगा है, तो क्या आप अपने घर में बैठे रहेंगे ? या कल्पवृक्ष के पास दौड़ेंगे? ____ कल्पवृक्ष की बात जाने दीजिए। देवी-देवताओं की कल्पित मूर्तियाँ हैं और कोई नहीं जानता, कि वे मनोकामना की पूर्ति करेंगी या नहीं, फिर भी कितने लोग उनके पास दौड़े जाते हैं ? कितने लोग उनके सामने अपने मस्तक झुकाते हैं? तब जहाँ साक्षात् देवाधिदेव प्रभु पधार जाएँ, वहाँ की तो बात ही क्या है। प्रभु तो जीते-जागते और सच्चे कल्पवृक्ष थे। लोग उनके दर्शन के लिए जाएँ, यह स्वाभाविक ही था। उनके मुखारविंद से रत्नों की वर्षा जो हो रही थी! भला कौन न दौड़ कर जाता? जिसमें धर्म के प्रति श्रद्धा है, वह धर्म-कार्य में देर क्यों करना चाहेगा? भगवान् वाणिज्यग्राम में पधारे तो नगर के बीच किसी गली-कूचे में नहीं ठहरे, किन्तु नगर के बाहर उद्यान में विराजमान हुए। लोगों ने यह नहीं सोचा, कि अभी तो काम-काज का वक्त है, फिर जाएँगे। इतनी दूर जाना पड़ेगा और फिर आना पड़ेगा! जाएँगे तो काम पड़ा रह जाएगा! ___ आज यह स्थिति है, कि लोग बेकाम बैठे रहेंगे, पर सन्त-समागम करने नहीं जाएँगे। भूले-भटके कभी आ गए और किसी सन्त ने पूछ लिया, श्रावकजी! आज तो बहुत दिनों बाद दीख पड़े। क्या इन दिनों काम-काज अधिक करना पड़ा। तो श्रावकजी कहते हैं- 'महाराज, काम तो कुछ नहीं है, यों ही नहीं आया गया।' जब काम काज नहीं है और निठल्ले बैठे हैं, तब तो यह दशा है; अगर काम हो तो न जाने क्या दशा हो? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003416
Book TitleUpasak Anand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Vijaymuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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