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________________ |९५४ | उपासक आनन्द । और चीज है, और न बोलना और चीज है। एक गूंगा भी झूठ नहीं बोलता है, फिर भी जब तक उसकी झूठ बोलने की वृत्ति नष्ट नहीं हुई है, वह सच्चा नहीं कहा जा सकता। अभिप्राय यह है, कि सम्यक्त्व प्राप्त हो जाने पर पापों का छूट जाना आवश्यक नहीं, किन्तु पापों को पाप न समझने का जो महान् पाप है, वह अवश्य छूट जाता है। इसी को हम चौथे गुणस्थान में विचारों की भूमिका बदल जाना कहते हैं। विचारों की भूमिका जब बदल जाती है, तो आगे भी दौड़ लगने लगती है, और जब आचार पूर्ण हो जाता है, तो आत्मा सब प्रकार के बन्धनों से अलग हो जाती है, और मुक्ति प्राप्त कर लेती है। ____ आनन्द जब भगवान् महावीर के चरणों में आया, तब अपनी जीवन-नौका के छेदों को बन्द करने लगा। भगवान् ने कहा है कि अनन्त-अनन्त काल बीत चुका है इस संसार समुद्र में तैरते-तैरते, मगर अब तक इसे पार नहीं कर पाया है, और जब तक जीवन-नौका के छेदों को बन्द नहीं करोगे, तब तक पार नहीं पा सकते। भगवान् की यह वाणी सुन कर जीवन-नौका का मल्लाह आनन्द अपनी नौका को छोड़ रहा है, और छोड़ने से पहले, भगवान् के नेतृत्व में वह अपने छिद्रों को बन्द कर रहा है। उसने पहले मिथ्यात्व का छेद बन्द किया, और फिर हिंसा आदि के छेदों को। व्यवहार में साधु बन जाना, या श्रावक बन जाना कोई बड़ी बात नहीं है। बडी बात है, जीवन के छिद्रों का बंद हो जाना। जब जीवन-नौका के छिद्र बंद हो जाते हैं, तभी वह निर्विघ्न दूसरे किनारे तक पहुँच सकती है। आज साधु और श्रावक की भूमिका में भी नाव डूबती हुई-सी मालूम होती है, क्योंकि हम उन छेदों को बंद करने का प्रयत्न नहीं करते, और फिर भी तैर जाना चाहते हैं। यह संभव नहीं है। ऐसी नाव नहीं तैर सकती। वह बीच में डूबे बिना नहीं रह सकती। बड़े-बड़े आदर्शों की चर्चा आप कर लेते हैं, किन्तु जीवन के महत्त्वपूर्ण प्रश्न ज्यों के त्यों अटके पड़े रहते हैं। इस प्रकार सारा जीवन छिद्रमय बना हुआ है, और चलनी की तरह हो रहा है। ऐसी छिद्रमय नाव किस प्रकार पार हो सकती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003416
Book TitleUpasak Anand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Vijaymuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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