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________________ जीवन के छेद यह उपासकदशांग सूत्र है और आनन्द का वर्णन आपके सामने चल रहा है। भगवान् महावीर के चरणों में पहुँच कर आनन्द ने जब भगवान् की वाणी सुनी, और जब अमृत की धारा ग्रहण की तो उसे असीम आनन्द हुआ। उसने विचार किया कि मेरा क्या कर्त्तव्य है। ज्यों ही उसे अपने कर्त्तव्य का भान हुआ, वह अपने जीवन का निर्माण करने के लिए, कल्याण करने के लिए उद्यत हो गया। भगवान् ने आनन्द के समक्ष जो प्रवचन किया था, वह सिर्फ आनन्द के लिए ही नहीं था । चतुर्विध संघ को लक्ष्य करके भगवान् ने तो प्रवचन किया था । साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका — यह चारों प्रकार के साधक संघ में सम्मिलित होते हैं, और ये ही सब मिलकर संघ कहलाते हैं। तीर्थंकर भगवान् संघ के नायक हैं। संघ को तीर्थ भी कहते हैं, और तीर्थ का निर्माण करने के कारण भगवान् 'तीर्थंकर' भी कहे जाते हैं। संघ और संघ - नायक में आपस में क्या सम्बन्ध है, यह विचारणीय है । हम अपनी परम्परा के अनुसार जब इस प्रश्न पर विचार करते हैं, तो एक सुन्दर कल्पना हमारे मस्तिष्क में जाग उठती है । कल्पना कीजिए, एक बड़ा समुद्र है। उसे पार करने के लिए नावों का एक बड़ा बेड़ा खड़ा है, और प्रत्येक नाविक अपनी-अपनी नाव को लेकर उस महासमुद्र में घुसने के लिए है। तब बेड़े का कमाण्डर मल्लाहों को आदेश देता है, कि अपनीअपनी नाव को तैयार कर लो। अपनी-अपनी नाव की चौकसी कर लो, और किसी की नाव में छेद हो, तो उसे बन्द कर लो। क्योंकि जिन नावों में छेद होंगे, वे समुद्र को पार नहीं कर सकेंगी। कमाण्डर का यह आदेश सुन कर कुछ मल्लाह अपनी-अपनी नाव दुरुस्त करते हैं, नाव में जहाँ कहीं छेद हो गए हैं, उन्हें बन्द कर देते हैं; मगर अनेक इस ओर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003416
Book TitleUpasak Anand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Vijaymuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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