SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 154
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ | मा पडिबंध करेह | १४१ वीरों की वाणी यों ही नहीं निकला करती। उनसे कोई बात कहलवाना चाहो, तो हजार बार प्रयत्न करोगे, तब भी नहीं कहेंगे। जिस दिन कह दी—हाँ भर ली, कि समझो वह बात हो गई। उनके लिए कहना कठिन, और करना सरल होता है। उनका कहना ही करना है। धन्ना जी बीच बाजार में होकर चले, और शालिभद्र के घर पहुँचे। नीचे से ही आवाज लगाई–शालिभद्र ! तुम्हें वीर प्रभु के चरणों में चलना हो तो— मा पडिबंधं करेह। क्यों देर कर रहे हो। माता और पत्नियों को रुलाना है, तो एक ही बार रुला दो। दिन पर दिन बीत रहे हैं। कैसा है, तुम्हारा वैराग्य । शालिभद्र ने यह आवाज सुनी। वह जागे और उठ खड़े हुए। भगवान् का दूसरा सिद्धान्त है, कि सोच लो, समझ लो, अपनी शक्ति को जाँच लो, और जब लहर आ जाए, तो विलम्ब न करो, पल भर की भी देरी मत करो। जो करना है, कर ही डालो। उसमें—मा पडिबंधं करेह । कुन्दन-भवन ब्यावर, अजमेर ३०-८-५० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003416
Book TitleUpasak Anand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Vijaymuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy