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________________ परिग्रह क्या है ? | ७७ जब दान देने का प्रसंग आता है, तब दिल में दर्द होता है, और वह सिकुड़ने लगता है। देने से पहले भी और बाद में भी पछताता है। कभी शंका से या लाज से मुठ्ठी ढीली करनी पड़े, तो उसे उस समय ऐसा अनुभव होता है जैसे बिच्छू ने डंक मार दिया हो। यह तो संसार है, मुटठी ढीलो करनी ही पड़ती है, किन्तु जब उसे ढीली करनी पड़ती है, तब पहले भी और बाद में भी वह रोता है, और जब लेखा देखता है, तब भी रोता है । जिस धन से मनुष्य की ऐसी स्थिति होती है, समझना चाहिए, वह धन पापानुबन्धी पुण्य से मिला है। पुण्यानुबन्धी पुण्य और पापानुबन्धी पुण्य के यह लक्षण आपके सामने हैं । इनके आधार पर आप सोच सकते हैं, कि आपने जो धन पाया है, वह पुण्यानुबन्धी पुण्य से पाया है, या पापानुबन्धी पुण्य से प्राप्त किया है। ____ मैं समझता हूँ, जैनदर्शन का प्रत्येक विद्यार्थी मम्मण सेठ से परिचित होगा। फिर भी उसकी कहानी संक्षेप में बतलाए देता हूँ, जो बड़ी ही विचित्र है ___राजगृही के मम्मण सेठ के पास ६९ करोड़ का धन था । इतना धन होने पर भी न वह स्वयं खाता, न दूसरों को खाने देता था। दूसरों की बात जाने दीजिए, वह अपने लड़कों को भी नहीं खाने देता था। कदाचित लड़कों को अच्छा खाते-पीते देख ले, तो घर में महाभारत मचा दे। आखिर लड़कों ने सोचा-ऐसे कैसे गुजर होगी? घर में रहेंगे, तो खानापीना और पहनना भी पड़ेगा। जिन्दगी है, तो बिना खाये-पीये कैसे चलेगी? लडकों ने सेठ से कहा-हमको थोड़ी-थोड़ी पूंजी दे दीजिए, जिससे हम कमाते रहें और अपना जीवन चलाते रहें, और इस धन को आप मुर्गी के अण्डे की तरह सेते रहिए ! आखिर, यह भी एक दिन हमें ही मिलेगा। सेठ ने कहा-पूजी तो दे दूंगा। किन्तु ब्याज सहित मूल पूजी वापिस ले लूगा। लड़कों ने कहा-अजी, हम तो आपके ही लड़के हैं। सेठ-लड़के हो, यह तो ठीक है, पर धन को बर्बाद करने के लिए थोड़े ही हो । तुम मेरी मूल रकम ब्याज समेत लौटा देना। उस पूजी से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003415
Book TitleAparigraha Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
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