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________________ ७२ | अपरिग्रह-दर्शन पहले सम्यग्दर्शन, फिर सम्यग्ज्ञान और पीछे चारित्र आता है । भगवान् महावीर ने भी यही कहा है - नादंसणिस्स माणं, नाणेण बिना न हंति चरण-गुणा । अगणिस्स नत्थि मोक्खो, नत्थि अमोक्खस्स निब्वाणं । -उत्तराध्ययन, अ०२८ अर्थात् -- जब तक तुम्हारे हृदय में, अन्तरात्मा में, सम्यग्दर्शन का आविर्भाव नहीं होगा, सत्य के प्रति दृढ़ आस्था नहीं होगी, तुम्हारे विश्वास में ढीलापन रहेगा, सत्य के प्रति सुनिश्चित संकल्प जागृत नहीं होगा, तब तक सम्यग्ज्ञान भी तुमको नहीं होगा। केवल पुस्तकें पढ़ लेने मात्र से, शास्त्रों में माथा-पच्ची करने से और हजार दो हजार श्लोक या गाथाएँ रट लेने से कुछ नहीं होगा। सच्चा ज्ञान, सत्य के प्रति दृढ़ संकल्प होने पर ही आ सकता है। अर्थात् जब तक सम्यग्दर्शन नहीं होगा, सम्यग्ज्ञान नहीं आएगा, और जब तक सम्यग्ज्ञान नहीं होगा, सत्य की ज्योति के दर्शन नहीं होंगे, संसार और मोक्ष का भेद समझ में नहीं आ जाएगा, और जब तक दोनों के स्वरूप को विश्लेषण करके न समझ लोगे, तब आचरण क्या करोगे? अर्थात् ज्ञान के बिना चारित्र नहीं हो सकता। कहा है___अगुणिस्स नत्थि मोक्खो, नत्थि अमोक्खस्स निव्वाण। जिसे सम्यक्चारित्र की प्राप्ति नहीं हुई है, उसे मोक्ष भी नहीं प्राप्त हो सकता, और मोक्ष प्राप्त हुए बिना पूर्ण-शान्ति नहीं मिल सकती। मोक्ष के लिए तीनों की साधना परम आवश्यक है। इस प्रकार चाहे कोई साधु हो या गृहस्थ हो, दोनों के लिए यही मार्ग है, और यही विधान है । साधु भी इसी रत्न-त्रय की आराधना करता है, और श्रावक भी इसी रत्न-त्रय की आराधना करता है । एक की आराधना सर्वाराधना है, और दूसरे की आराधना देशाराधना है, मगर आराधना दोनों की ही है, और है भी रत्न-त्रय की हो! तो, साधु और श्रावक का मार्ग फिर अलग-अलग किस प्रकार हो सकता है। जिस मार्ग पर साधु चल रहा है, उसी मार्ग पर श्रावक भी चल रहा है । साधु आगे-आगे चल रहा है, और श्रावक पीछे-पीछे और धीमेधीमे । तो, दोनों में आगे पीछे का अन्तर है, मार्ग का भेद नहीं है। आगेपोछे चलना अपनी शक्ति पर निर्भर करता है। कहा जा सकता है, कि गृहस्थ चलता तो है, पर संसार में ही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003415
Book TitleAparigraha Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
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