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________________ ६८ ] अपरिग्रह दर्शन तो, सोचा गया-क्या दूसरे को उत्तराधिकारी बनाया जाए ? वह वीर है, बहादुर है, और अन्त तक संघर्ष करने वाला है । किन्तु संसार में केवल तलवारों के भरोसे ही फैसला नहीं होता है । यह वह आदमी है, जो अपनी चीज की रक्षा करेगा । और स्वयं मौज करेगा, किन्तु दूसरों को कोई सान्त्वना नहीं देगा; वह अन्याय और अत्याचार के बल पर और तलवार के भरोसे पर दूसरों को समाप्त कर देगा । वह प्रजा की भूख की परवाह नहीं करेगा । वह भागेगा नहीं, जिन्दगी भर खून बहाएगा। तो, ऐसे आदमी को भी उत्तराधिकारी नहीं बनाया जा सकता है। वह तो देश में अशान्ति की लहरें ही पैदा करता रहेगा । शेष रहा तीसरा राजकुमार, बस वही उत्तराधिकार के योग्य है । उसने खुद भी खाया और किसी को डंडा भी नहीं दिखलाया - उसने बुद्धिमानी के साथ स्वयं खाया और दूसरे को भी खिलाया । इस प्रकार उसने अपने प्रतिद्वन्द्वी को भी अपना प्रेमी बना लिया। उसके पास अपनी आव श्यकता से अधिक जो साधन थे, उनसे उसने दूसरे को लाभ पहुँचाया । इसी प्रकार की वृत्ति की जीवन में आवश्यकता है। जो संघर्ष के समय बुद्धिमत्ता का परिचय दे, अपनी आवश्यकताओं की भी पूर्ति करे, और दूसरों की आवश्यकताओं का भी ख्याल रखें, वही योग्यता और सफलता के साथ राज्य का संचालन कर सकता है, और प्रजा के प्रति वफादार रह सकता है । जिस देश, समाज और परिवार में ऐसे उत्तराधिकारी होते हैं, वही देश, समाज और परिवार फलते-फूलते हैं । आखिर, राजा ने उस तीसरे राजकुमार को अपना उत्तराधिकारी बना दिया | योग्य व्यक्ति का चुनाव कर लिया गया । संघदास गणी के इस रूपक का भाव यह है, कि जब अपना उत्तराधिकारी बनाने का विचार करो, तब इस दृष्टिकोण से विचार करो । देख लो कि तुम्हें कायर और भगोड़े को उत्तराधिकारी बनाना है, दूसरों को डंडे मार-मार कर अपना पेट भरने वाले को उत्तराधिकारी बनाना है, या स्वयं भी खाने और दूसरे को भी खिलाने वाले को अपना उत्तराधिकारी बनाना है ? अभिप्राय यह है, कि आप जो परिग्रह इकट्ठा करते हो, तो उसकी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003415
Book TitleAparigraha Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
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