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________________ ४० | अपरिग्रह-दर्शन जाना है । इतना अवश्य कहना है, कि इस प्रकार का दान जनता के मन में आग सुलगा देता है, और उसकी प्राप्ति के लिए एक दौड़ लग जाती है। ममता का त्याग ही सच्चा दान है । कपिल जब भी गये, खाली हाथ ही लौटे। मगर लोक में प्रसिद्ध है, कि आशा अजर-अमर है। कपिल ने महीनों तक दौड़-धप की, इसलिए कि किसी प्रकार दो माशा सोना मिल जाए ! एक दिन तो उसकी स्त्रो ने झिड़क कर कह दिया तुम बड़े आलसी हो। समय पर उठते नहीं, समय पर पहुँचते नहीं, फिर सोना कहां से मिले ? प्रमाद त्यागो, तो सुवर्ण मिले ? कपिल ने किचित् सहन कर कहा-बात तो ठीक है, अच्छा, आज तुम मुझे जल्दी जगा देना । सबसे पहले पहुँच जाऊँ । इतना कहकर और जल्दी से जल्दो जागने का संकल्प करके वह लेट गया। वह लेट तो गया, मगर नोंद उसे नहीं आई । रात्रि के बारह बजे वह उठ बैठा, और सीधा राजमहल की ओर चल दिया। वह इधरउधर भटकने लगा। सिपाहियों ने देखा, आधी रात में भटकने वाला कोई भला आदमी नहीं हो सकता? जरूर कोई चोर होगा, और उसे चोर समझकर पकड़ लिया । कपिल ने बहुत कहा-मैं चोर नहीं हूँ, गुण्डा नहीं है। मैं दो माशा सोना लेने आया है। पर किसी ने उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया । 'क्या यह सोना लेने का समय है ?' कहकर सिपाहियों ने उसे कोठरी में बन्द कर दिया । सन्देह में बन्दी बना लिया। प्रातःकाल कपिल को दरबार में हाजिर किया गया। उसके वस्त्रों के तार-तार हो रहे थे, भूख के मारे आंखें अन्दर को धंसी जा रही थीं, और वह हड्डियों का ढांचा नजर आ रहा था। राजा की निगाह कपिल पर पड़ी, और वह फौरन ताड़ गया, यह गरीब ब्राह्मण है, और सचमुच सोना लेने की फिराक में निकला होगा। लेकिन बेचारे को पकड़ लिया है। फिर राजा ने कपिल से पूछा --रात में क्यों भटक रहे थे ? कपिल-अन्नदाता, कई महोने हो गये भटकते-भटकते, पर सोना हाथ न आया । और, आज जब सोना लेने के लिए जल्दी आया, तो इन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003415
Book TitleAparigraha Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
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