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________________ ३८ | अपरिग्रह-दर्शन के कपड़े को खून से ही साफ करने का प्रयत्न करता आया है । परन्तु यह कंसे हो सकता है ? आग जल रही है, और उसके ऊपर दूध गरम करने के लिए रख छोड़ा है । जब दूध गरम होता है, तब उसमें उफान आता है, और बह नीचे गिरने लगता है | नीचे गिरने लगता है, तो पानी के ठंडे छींटे दिये जाते हैं, और वह शान्त हो जाता है । थोड़ी देर में फिर दूध उफनने लगता है, तो फिर छींटे दिए जाते हैं, मगर इस प्रकार ठंडे छींटे दे-देकर दूध को कब तक शान्त रखा जायगा ? नीचे आग जल को उफनना ही है । उसे शान्त नहीं किया जा सकता। करने का तरीका आग को शान्त कर देना ही है । इस पर पंजाब के एक भाई की कहानी मुझे याद आ रही हैकुछ ऊंट वाले थे, और नित्य की भांति उस दिन भी वे ऊँटों पर माल लाद कर चले । सन्ध्या हुई, और अंधकार होने लगा तो उन्होंने एक मैदान पड़ाव डाला। ऊँटों पर से बोरियां उतार दी गयीं। उनमें से एक आदमी ने सोचा- रात का समय है, और अन्धेरा है । नींद आ गई, और कोई बोरियां उठा ले गया, तो मुश्किल हो जायगी । यह सोचकर उसने बोरियों में रस्सा बांधकर उसे अपने परों से बांध लिया और सो गया । रही है, तो दूध दूध को शान्त आधी रात के करीब चोर आए, और संयोगवश उसी की बोरियों पर उन्होंने हाथ डाला । वे बोरी सरकाने लगे तो वह जाग गया और बड़बड़ाने लगा -- अरे कौन है ? उसके साथियों ने सोचा-सोते में, छाती पर हाथ पड़ गया है, और इसी कारण बड़बड़ा रहा है । अतएव उन्होंने आंखें मींचे मींचे कहा- राम-राम कर। तब वह बोला - घसीट मिटे तो रामराम करू, घसीट न मिटे तो राम-राम कैसे हो ? यही बात दूध के उफान के सम्बन्ध में है । नीचे जलती हुई आग शान्त हो, तो उफान शांत हो। आग शांत नहीं होती तो उफान कैसे शान्त हो सकता है ? लोभ मिटे, तो शान्ति मिले । यही बात लोभ के विषय में भी है । मनुष्य आज क्या कर रहा है ? उसके भीतर लोभ की आग जल रही है और उसकी तृष्णा उफन उफन कर ऊपर आती है । जो त्याग और वैराग्य को बातों के छींटे दे-दे कर उसे शांत करना चाहता है, वह थोड़ी देर के लिए हो उसे भले शान्त कर ले, मगर जब तक लोभ को आग को ठण्डा नहीं करता, स्थायी शान्ति कैसे हो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003415
Book TitleAparigraha Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
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