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________________ आवश्यकताएँ और इच्छाएँ | २७ चाहता है, महाराजा सम्राट् होने का गौरव प्राप्त करना चाहता है । और एक सम्राट दूसरे सम्राट को अपने पैरों पर झुकाना चाहता है । इस स्थिति में विराम कहाँ ? विश्राम कहां ? तृप्ति कहां ? तृप्ति इच्छाओं के प्रसार में नहीं, विरोध में है । तृप्ति बाहर नहीं भीतर है। तृप्ति अक्षय कोष में नहीं, तोष में है । मगर दुनियां के साधारण लोगों की तरह कोणिक ने भी इस तथ्य को नहीं समझा था । तो, वह सम्राट बनकर भी तृप्त नहीं हो सका । उसने अपने पिता को कैद करके कारागार में डाल दिया और सिंहासन पर कब्जा कर लिया। इसके बाद उसकी निगाह अपने भाइयों की तरफ दौड़ो । उनके पास क्या था ? मनोरंजन के लिए हार था और हाथी था । मगध के विशाल साम्राज्य की तुलना में हार और हाथी का क्या मूल्य ? कहा जा सकता है कि अपने भाइयों का हार और हाथी लेने की इच्छा अपने आप कोणिक के मन में उत्पन्न नहीं हुई थी । वह तो उसकी पत्नी के द्वारा उत्पन्न की गई थी; मगर चाहे कोई स्वयं आग में कूद पड़े या किसी के कहने से आग में कूदे, नतीजा तो एक समान ही होगा। हर हालत में उसे झुलसना पड़ेगा। हार और हाथी को हथिया लेने की हविस चाहे स्वयं पैदा हुई, चाहे रानी के कहने से पैदा हुई, यह अपने आप में कोई महत्वपूर्ण बात नहीं है। तथ्य यह है कि कोणिक के दिल में वह इच्छा उत्पन्न हुई और एक दिन कोणिक ने उनसे कहा-अपना हार और हाथी मुझे दे दो। ये दोनों राज्य के रत्न हैं । भाइयों ने उत्तर दिया - हमें राज्य का कोई हिस्सा नहीं मिला है। और उसके बदले में यह दो चीजें मिली हैं । यह लेनी हैं तो राज्य का हिस्सा दे दो । कोणिक ने कहा- राज्य मुझे मिला नहीं है । मैंने उसे पाया है । इसमें से कुछ नहीं मिलेगा। मुझे हार और हाथी दे दो । जब यह वृत्तियां जागती हैं, कि देने को कुछ नहीं है, किन्तु लेने को सब कुछ है, तो तीखी तलवारें बाहर आने से पहले ही मन में फिर जाती हैं ! और जब वह बाहर आ जाती हैं तो घमासान मच जाता है ! तृष्णा में से ज्वाला निकलती है । तो कोणिक ने इस घटना को लेकर अपने भाइयों के आश्रयदाता अपने नाना के साथ अनेक अत्याचार किये और अनेकों का खून बहाया ! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003415
Book TitleAparigraha Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
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