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________________ २० । अपरिग्रह-दर्शन आवश्यकताओं से मेल नहीं खाती, और आगे-आगे बढ़ती जाती है, काट दो, समाप्त कर दो। जो अपनी इच्छाओं को, आवश्यकताओं तक ही सीमित रहता है, उसका गृहस्थ जीवन सन्तोषमय और सुखमय बनता है। घस्तुतः वही साधना का पात्र बनता है। इसके विपरीत जो अपनी आकांक्षाओं और इच्छाओं को नियन्त्रित नहीं करता, उसका जीवन उस गाड़ी के समान है, जिसमें ब्रेक न हो। ऐसी गाड़ी खतरनाक होती है। तो, जीवन की गाड़ी में भी ब्रेक का होना अत्यन्त आवश्यक है - अन्यथा वह ब्रेक-र हित गाडी के समान ही अन्धी दौड़ दोडेगा, और उसी गाड़ी के समान दूसरों को भी कुचलेगा, और स्वयं भी चकनाचूर हो जायगा। . जैनधर्म कहता है, कि जीवन की गाड़ी को चलाना तो है, किन्तु उस पर अंकुश रख कर ही चलाना होगा। जहां तक आवश्यकता है, उसे वहीं तक ले जाए तो ठीक है। मगर उससे आगे ले जाना खतरनाक और गलत है। अगर कहीं तुम्हारे स्वार्थ से दूसरे का स्वार्थ टकरा रहा हो, तो अपने ही स्वार्थ को मत देखो। दूसरे की आवश्यकताओं का भी आदर करो। अपने स्वार्थ की गाड़ी को अन्धाधुन्ध उन पर मत चला दो । बचा कर चलाओगे, तो हजारों गाड़ियां चलती रहेंगी, कोई टक्कर नहीं होगी। यदि इस रूप में नहीं चलोगे, तो टक्कर लगना अवश्यम्भावी है, और जहाँ दूसरों की गाड़ो चकनाचूर होगी, वहीं तुम्हारी गाड़ी भी चूर-चूर हो सकती है। यही अपरिग्रह-व्रत का आदर्श है । जहाँ तक जीवन की आवश्यकता का प्रश्न है, परिग्रह का महत्व समझा जा सकता है, किन्तु उसके आगे परिग्रह चले तो उस पर अंकुश लगा दो, फिर वह परिग्रह भी एक दृष्टि से अपरिग्रह हो जाता है। इस रूप में आनन्द ने अपनी इच्छाओं का परिमाण किया तो उसकी समस्या हल हो गई। उसने जो सम्पत्ति प्राप्त कर ली थी, उसमें बढ़ोत्तरी नहीं की। उसके पास बहुत संचय था अतएव उसने उसका बढ़ाना एकदिम बन्द कर दिया। उसने अपनी इच्छो और ममता पर अंकुश लगा दिया, कि मेरे पास जो धन-सम्पत्ति है, उसे न अधिक बढ़ाऊँगा और न उससे अधिक रखगा ही। और इस रूप में इच्छा-परिमाण का महान् रूप उसके जीवन में उतरा । अपनी इच्छाओं को परिमित कर लिया। ___ आज दुनिया में जो संघर्ष है और वह संघर्ष आज से ही नहीं हैअनन्त-अनन्त काल से चला आ रहा है- अगर उसके मूल को खोजने चलें, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003415
Book TitleAparigraha Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
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