SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 194
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इच्छाओं का वर्गीकरण | १८३ बच्चों को साथ लेकर वृक्षों के नीचे या फुटपाथ पर पड़ा रहे । वह यह भी नहीं कहता, कि जोवन-यात्रा को ठीक तरह चलाने के लिए कुछ भी संघर्ष व श्रम न करो। और बस, इधर-उधर जूठी पत्तलों को चाट कर या भीख मांग कर जीवन गुजारो।" यह व्यर्थ का वैराग्य है, वैराग्य का ढोंग है। जीवन में यथार्थता और वास्तविकता को स्वीकार किए बिना कोई भी धर्म चल नहीं सकता। और इसलिए जीवन की आवश्यकताओं से कोई इन्कार नहीं कर सकता। किन्तु इस सम्बन्ध में शर्त एकमात्र यही है, कि आवश्यकताएं वास्तव में आवश्यकताएं हों, जीवन की मूलभूत समस्याएं हों, सिर्फ अहंकार और दम्भ को परितृप्ति के लिए न हो। इसलिए भगवान महावीर का दर्शन हमें कहता है कि "यदि जीवन में शान्ति एवं अनाकुलता चाहते हो, तो इच्छा-परिमाण व्रत धारण करो।" जीवन में जो इच्छाएँ हैं, आवश्यकताएँ हैं, उनको समझने का प्रयत्न करो कि वे जीवन-धारण के लिए आवश्यक हैं, उपयोगी हैं, या सिर्फ शृंगार या अहंकार के पोषण के लिए ही हैं ? इच्छाओं का वर्गीकरण करने के बाद ही आपके जीवन में उद्बुद्ध हुई इच्छाओं के सम्बन्ध में समय पर उचित निर्णय हो सकता है, कि अमुक प्रकार की इच्छाएं पूर्ण करनी हैं, और अन्य सब अनुपयोगी इच्छाओं की एक सीमा और मर्यादा बन जाएगी, और तब जोवन में परेशानी, कठिनाई और तकलीफें कम हो जाएंगी। हर परिस्थिति में आनन्द और उल्लास का अनुभव होने लग जाएगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003415
Book TitleAparigraha Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy