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________________ १८२ | अपरिग्रह-दर्शन है । मान लीजिए एक बहन को साड़ी की आवश्यकता है, और इसके लिए वह पति से आग्रह करती है, स्वयं भी खरीद लेती है, यह आवश्यक विकल्प है। किन्तु इसी के साथ यदि दूसरा विकल्प जुड़ जाए कि साड़ी अमुक प्रकार की हो, जरी की हो, बनारसी हो, नाइलोन या सिल्क की हो, तो यह गलत है। साड़ी के मूल्य और बढ़ियापन का जो विचार है, वह शरीर की आवश्यकता के लिए नहीं, बल्कि इच्छा और अहंकार की पूर्ति के लिए है । जब इस प्रकार की गलत इच्छाओं से मनुष्य घिर जाता है, तो फिर यह विश्लेषण करना भी कठिन हो जाता है, कि कौन इच्छा आवश्यकता है, और कौन इच्छा, इच्छा है ? कौन सही है और कौन गलत ? . एक बार मैं एक भाई के यहाँ गोचरी के लिए गया । जब भोजन ले चका तो गृहस्वामी ने अतिथि कक्ष के कमरे को देखने का आग्रह किया। कमरा साज-सज्जा से चमक रहा था। कमरे में हर तरफ इतनी सजावट की चीजें थीं कि इधर-उधर चलना-फिरना भी कठिन था । मैंने पूछा कि यह मकान आपने अपने लिए बनवाया है, या इन साज-सज्जाओं के लिए? सेठ ने उत्तर दिया, कि अपने लिए बनाया है महाराज । मैंने कहा "सेठ आपका कमरा नाना प्रकार की साज-सामग्रियों से ऐसे ठसाठस भरा है. कि प्रवेश करने का रास्ता बड़ा तंग है । चौबीसों घंटा यह आपको चिन्ता सताती होगी कि कहीं कोई चीज गिर न जाए। यदि किसी बच्चे के हाथ से कोई नुकसान हो जाता होगा, तो फिर वह बुरी तरह पीटा भी जाता होगा । अब बताइए, यह मकान आपके लिए कहाँ है ? यह तो बस फर्नीचर के लिए है ?" सेठ के पास इसका कोई उत्तर नहीं था। बात बिलकुल ठीक है । जिस मकान को व्यक्ति अपने रहने के लिए बनाता है, उसे मन के अहंकार और अनावश्यक विकल्पों की पूर्ति के लिए मंहगे मूल्य पर खरीदे गए सामान से भर देता है, और उन मेहमानों को सौंप दिया जाता है, जो जड़ हैं, और जिन्हें उसके उपयोग का न कोई भान है, न कोई आनन्द है। उक्त परिस्थिति पर विचार करने से पता चलेगा कि मकान एक आवश्यकता है, और यह भी अपेक्षणीय है, कि वह साफ-सुथरा हो, हवापानी की सुविधा से युक्त हो। कोई धर्म, जिसका दिल-दिमाग सही है, यह नहीं कहता कि "गृहस्थ अपना घर-बार छोड़कर, परिवार को बाल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003415
Book TitleAparigraha Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
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