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________________ सर्वोदय और समाज | १६६ रचना करके वर्तमान समाज की प्रचलित दासता, अविषमता और अस हिष्णुता को सदा के लिए दूर करके, समाजवाद स्वतन्त्रता समता और भ्रातृत्व की वास्तविक स्थापना करना चाहता है ।" परन्तु याद रखिए, समाजवाद वहीं पर पल्लवित और विकसित हो सकता है, जहाँ के व्यक्ति में सामूहिक एवं सामाजिक भावना का उदय हो चुका हो। एक विद्वान ने कहा है"समाजवाद दो ही स्थानों पर काम करता है - एक मधुमक्खियों के छत्त में और दूसरे चिटियों के बिल में ।" इसका अभिप्राय केवल इतना ही है, कि मधुमक्खी और चींटी में व्यापक रूप में सामाजिक भावना का उदय हुआ है। वर्तमान युग के तत्व-दर्शी कार्ल माक्र्स ने अपने एक ग्रन्थ में कहा "TOP" - "समाजवाद मनुष्य को विवशता के क्ष ेत्र से हटाकर उसे स्वाधीनता के राज्यों में ले जाना चाहता है ।" समाजवाद के सम्बन्ध में इस प्रकार के विभिन्न विचार हैं । फिर भी हमें यह सोचना है, कि समाजवाद समाज को ऐसी क्या वस्तु प्रदान करता है, जिसके कारण वह आज के युग में प्रत्येक राष्ट्र के लिए अथवा धरती के अधिकांश राष्ट्रों के लिए आवश्यक बनता जा रहा है । महावीर का सर्वोदय : समाजवाद क्या है ? इस प्रश्न के उत्तर में कहा जाता है, कि समाजवाद एक आदर्श है, समाजवाद एक दृष्टिकोण है और समाजवाद जीवन की एक प्रणाली है । आज के युग में और विशेषतः राजनीति में वह एक विश्वास है, और है एक जोवित जन-आन्दोलन । समाजवाद का राजनैतिक रूप, जैसा कि उसके पुरस्कर्ताओं ने प्रतिपादित किया है, यदि उसी रूप में वह समाज में स्थापित किया जाता है, तो वह समाज के लिए एक सुन्दर वरदान ही है, भीषण अभिशाप नहीं है । समाजवाद क्या चाहता है ? इस प्रश्न के उत्तर में कहा जाता है, कि समाजवाद, समाज की भूमि और समाज की पूँजो का सम-वितरण चाहता है । वह समाज की भूमि और समाज की सम्पत्ति पर समाज का ही आधिपत्य चाहता है। समाजवाद का ध्येय है - एक वग-हीन समाज की स्थापना । वह वर्तमान समाज का संघटन इस प्रकार करना चाहता है, कि वर्तमान में परस्पर विरोधी स्वार्थी वाले शोषक, शोषित तथा पीड़क और पीड़ित वर्गों का अन्त हो जाए । समाज, सहयोग और सह-अस्तित्व के आधार पर संघटित व्यक्तियों का एक ऐसा समूह बन जाए, जिसमें एक सदस्य की उन्नति का अर्थ स्वभावतः दूसरे सदस्य को उत्पति हो, और सबलिकर सामूहिक रूप से परस्पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003415
Book TitleAparigraha Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
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