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१४८ | अपरिग्रह-दर्शन
प्राकृतिक दृष्टिकोण से भी इस पर विचार करना चाहिए। बात यह है, कि वर्षाकाल में अनेक प्रकार के विषैले प्राणी पैदा हो जाते हैं । वर्षाकाल में जो नमी और सीलन रहती है, उससे जीवों की उत्पत्ति में अभिवृद्धि हो जाती है । काले-कजरारे बादलों से आकाश घिरा रहता है, जिससे कि सब ओर अंधकार - सा छाया रहता है। वर्षाकाल में घर में बहुत-सा कूड़ा-कचरा भी इकट्ठा हो जाता है । अतः घर की स्वच्छता और उज्ज्वलता नष्ट हो जाती है, और हमारे चारों ओर एक गन्दा वातावरण फैल जाता है । निरन्तर वर्षा होते रहने के कारण बाहर में कीचड़ और अन्दर में गन्दगी फैल जाती है, तथा लगातार आकाश में आच्छन्न होने के कारण असंख्य तारकों की नयनाभिराम झिलमिल ज्योति भी दृष्टिगोचर नहीं होती। इस कीचड़, गन्दगी और अन्धकार से मानव मन ऊब ऊब जाता है । वर्षाकाल की समाप्ति पर जब आकाश स्वच्छ हो जाता है, और बाहर का कीचड़ सूख जाता है, तब घर के अन्दर की गन्दगी को भी बाहर निकालने का प्रयत्न किया जाता है । शारदी पूर्णिमा के उजियाले में जब हम अनन्त नील गगन में असंख्य तारों को जगमग करते देखते हैं, और चन्द्र ज्योत्स्ना से समग्र विश्व को दुग्ध-स्नान जैसे उज्ज्वल रूप में देखते हैं, तब मानव-मन उल्लास और आनन्द से भर जाता है । शरद पूर्णिमा से ही लोग अपने घरों की सफाई और पुताई शुरू कर देते हैं, और तब यह समझा जाता है, कि ra दीपावली पर्व निकट है और उसकी आराधना के लिए तैयारियाँ होने लगती हैं । उस समय मनुष्य अपने घर और बाहर सबको स्वच्छ और पावन बनाने का प्रयत्न करने लगता है। मनुष्य का उदास मन प्रसन्न हो उठता है, जबकि वह अपने घर के आंगन में दीपकों की माला को जगमगजगमग करते देखता है । दीपकों की उस ज्योतिर्मय माला से उसके घर का अन्धकार ही दूर नहीं होता, बल्कि प्रांगण का अन्धकार भी दूर भाग जाता है । इस पर्व के दिन अन्दर और बाहर प्रकाश छा जाता है । इसी आधार पर इसको प्रकाश पर्व कहा जाता है । अन्धकार मानव-मन को उल्लसित नहीं करता, वह उसे उदास बनाता है, पर प्रकाश का स्पर्श पा कर वह अन्धकार दूर भाग जाता है, और मानव जीवन का कण-कण आलोक से आलोकित हो उठता है । दीपावली पर्व क्या था ? इसके पीछे हमारा सही दृष्टिकोण क्या था ? उसे आज हम भूल गए हैं अन्दर और बाहर की स्वच्छता ही इस पर्व का मुख्य उद्देश्य था । गन्दगी हिंसा का प्रतीक है, और स्वच्छता अहिंसा का प्रतीक । हम गन्दगी को
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