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________________ इच्छाओं के द्वन्द्व का समाधान | १३७ . आनन्द का मार्ग यह है, कि जो तुम्हें प्राप्त है, अपने प्रारब्ध एवं पुरुषार्थ से जीवन में जो कुछ पा सके हो, उसो में आनन्द की अनुभूति करो, इच्छाओं को वहीं पर केन्द्रित करो। जो असम्भव है, अशक्य है, जिसे प्राप्त नहीं कर सकते, और जिसे प्राप्त करके जोवन को कुछ लाभ नहीं होने वाला है, उसकी चिन्ता छोड़ दो, इच्छाओं और आशाओ को उधर से मोड़ लो । इच्छाओं पर संयम आवश्यक है । भगवान् महावीर ने जीवन को इसी प्रक्रिया को 'इच्छा-परिमाण व्रत' कहा है। अनन्त इच्छाओं का सोमाकरण कहा है । जब इच्छाएँ सीमित हो गयीं, तब आवश्यकताएं भी सीमित हो गयीं। जब आवश्यकताएँ सीमित होती हैं. मनुष्य की जीवन-यात्रा में द्वन्द्व, संघर्ष, विग्रह कम होते हैं । द्वन्द्वातीत स्थिति में ही सुख है, शान्ति है, और आनन्द है । आखिर में वही आनन्द जीवन का परम सत्य है ! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003415
Book TitleAparigraha Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
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