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________________ १२० | अपरिग्रह-दर्शन ___'लोग क्या कहेंगे'--यह जो तर्क है, वह उसकी वृति को बदलता नहीं, बल्कि दबाता है, और उसमें भय को वृत्ति पैदा करता है। आपने लोगों का भय उसके मन में पैदा किया, अब वह लोगों से छिपकर वही काम करेगा। बुराई को चोरी-छिपे करेगा। आप अवश्य ही उसे नैतिक बनाना चाहते हैं, किन्तु आपके तर्क और हेतु उसमें नैतिक आधार तैयार नहीं कर सकते। सामाजिक जीवन में ऐसे सैंकड़ों रीति-रिवाज चले आ रहे हैं, जिनमें आपका विश्वास नहीं है, आप उन्हें बुरा समझते हैं, किन्तु फिर भी निभाए जा रहे हैं। किस आधार पर? यही कि लोग क्या कहेंगे? बच्चे को लोक-भय दिखाकर बुराई से बचाना चाहते हैं, और आप स्वयं लोक-भय से बुराई को निभाते जा रहे हैं। इस प्रकार दो पाटों के बीच आप पिसते जा रहे हैं । ____ मैं कह रहा था कि बुराई को छोड़ने तथा निभाने के जो ये हेतु हैं, वे गलत हैं, इन्हें बदलना होगा। इन पुराने मूल्यों की जगह दृष्टि के नये मूल्य स्थापित करने होंगे। मैंने एक मुनिजी को देखा-अपने शिष्य को कह रहे थे-'अरे भाई ! यह क्या कर रहा है ? श्रावक क्या कहेंगे ?" मैंने उनसे कहा-"महाराज! आपने शिष्य को गलती करने से रोका, यह तो ठीक है, किन्तु रोकने का जो हेतु दिया, वह गलत है । शिष्य को परिबोध देने का यह तरीका ठीक नहीं है। 'श्रावक क्या कहेंगे'- इस बात से आपने उसमें श्रावकों से छुपकर गलती करने की वृत्ति पैदा कर दी। आपको कहना चाहिए था, कि -- 'अरे भाई ! तेरी आत्मा क्या कहेगी ?' बाहर के दबाव से रोकने का मतलब हुआ वैराग्य नहीं जगा, आत्म-साक्षी की भावना पैदा नहीं हुई। और जब तक आत्म-साक्षी की भावना नहीं जगेगी, तब तक वह अपनी भूल को, वृत्तियों को निर्मूल करने का निष्ठा के साथ प्रयत्न नहीं कर पाएगा। कभी-कभी मैं सोचता है और एक दो बार कहा भी है, कि हम बाहरी आधार पर जो त्याग की बात कहते हैं, वह मौलिक नहीं है । धूम्रपान और मद्यपान का निषेध हम करते हैं, उसका नैतिक आधार तो ठीक है, किन्तु तत्वतः हमारा अधिक आधार भौतिक है। हम उसके त्याग में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003415
Book TitleAparigraha Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
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