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________________ ११६ / अपरिग्रह दर्शन उपशम क्या है: भीतर में राग व द्वेष की आग नष्ट नहीं होती, दबी रहती है, किन्तु साधना के द्वारा क्षणिक शीतलता-धीतरागता प्राप्त हो जाती है, यह साधना का उपशम है। इसमें साधक बाहरी दबाव आदि के कारण छल, कपट, दिखावा तो नहीं करता, परन्तु वह इतना दुर्बल होता है कि वृत्तियों को नष्ट नहीं कर पाता, दबा देता है । दबी हुई वृत्तियां समय पाकर फिर उभर आती हैं । यही साधना का उपशम भाव है। __मैं इस सम्बन्ध में एक उदाहरण आपके समक्ष रखना चाहता है। घर में कडा पड़ा है, बहत दिन से सफाई नहीं हुई है। अचानक आपका कोई बड़ा रिश्तेदार या मेहमान आ गया, तो जल्दी में आप उस कड़े-कचरे को बाहर नहीं फेंक कर उस पर कोई सुन्दर कपड़ा, चादर या मावरण डाल देते हैं कि मेहमान को यह न लगे कि यहां सफाई नहीं है। गन्दगी, कड़ा-कचरा घर से निकाल कर फेंका नहीं गया, बल्कि दबा दिया गया है। कुछ ऐसी ही स्थिति वृत्तियों के उपशमन की भी है। दूसरा उदाहरण एक और है- एक कांच के ग्लास में आपने मटियाला पानी भरा । पानी में मिट्टी है, आपने उसे एक ओर धीरे से रख दिया तो कुछ ही समय में उसकी मिट्टी नीचे बैठ गई, ऊपर से पानी अब बिल्कुल साफ व स्वच्छ दिखाई दे रहा है। पर यह स्वच्छता क्या हैयदि पानी थोडा-सा हिल गया, तो मिट्टी फिर समूचे पानी में घुल जाएगी और पानी फिर से मटमैला हो जाएगा। मन की इस प्रकार की वृत्तिउपशम है। उपशम भाव का अर्थ है-क्रोध, मान, लोभ आदि की जो वत्तियां हैं, वे दबी रहती हैं, भीतर ही भीतर निष्क्रिय रूप से छिपी रहती हैं, उनके ऊपर शान्ति और सरलता का भात छाया रहता है, जिससे उसको उष्मा शान्त रहती है । किन्तु ये दमाई हुई वृत्तियां अधिक समय तक शान्त नहीं रह सकती । यही कारण है कि उपशम का कालमान अधिक से अधिक अन्त मुहूर्त का बताया गया है । वृत्तियाँ किसी रूप में एक बार दब सकती हैं, पर जैसे ही समय आया कि वे पुनः उद्दीप्त हो उठती हैं । मन कितना चंचल है, भावना में लहरों की तरह कितनी उथल-पुथल होती रहती हैयह तो हम प्रतिक्षण अनुभव करते ही हैं। मन के इसी उददीपक रूप को ध्यान में रखकर उपशम सम्यक्त्व का कालमान भी अन्तमुहर्त से अधिक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003415
Book TitleAparigraha Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
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