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________________ साधक-जीवन : समस्याएं और समाधान | ११५ शासन का अंग थी, आज परिवार और व्यक्तिगत जीवन का अंग बन गई है। राजा का लक्षण बताते हुए महाभारत में व्यास ने राजनीति के सम्बन्ध में एक बात कही है --- वाङ नवनीतं, हृदयं तीक्ष्ण-धारम्। -आदिपर्व, ३।१२३ राजा की वाणी तो मक्खन के समान कोमल होती है, परन्तु हृदय पैनी धार वाले छरे के समान तीक्ष्णा होता है। अर्थात अपने अन्तर -भावों को छिपाते रहना, बिलकुल शान्त रहना, वाणी से मीठी-मीठी बातें करना और भीतर से शत्र का मूलोच्छेदन कर डालने के लिए षड्यन्त्र के छुरे चलाते रहना यह राजा का लक्षण है। हजारों वर्ष बीत जाने के बाद भी, राजनीति की यह वृत्ति आज भी उसी रूप में चल रही है। मैं मानता है, उस समय यह नीति राजनीति का अंग थी, पर आज तो वह जीवन का अंग बन गई है। जो बातें कभी दुर्जन के लिए कही जाती थी, वे आज बड़े-बड़े सज्जन अपना रहे हैं। संस्कृत साहित्य में एक सूक्ति है "मुखं पद्मदलाकारं वाणी चन्दन-शीतला। हण्यं कर्तरी-तुल्यं, त्रिविधं धूर्त-लक्षणम् ॥" किसी धूर्त का मुह देखिए, ऐसा मालूम होता है कि मानों, खिला हुआ कमल हो । मुख पर बड़ी प्रसन्नता, मुस्कान चमकती मिलेगी। और वाणी सुनिए तो चन्दन जैसी शीतल। बड़ी मीठी। किन्तु हृदय उसका कोई देख सके तो वहां छल-कपट की कैंची चलती हुई मिलेगी, जो अच्छे से अच्छे मित्र को भी काटती चली जाती है । मन, वचन और कर्म की यह विषमता कभी धर्त प्रपंची की विशेषता रही है । पर, आज तो सज्जन कहे जाने वाले व्यक्ति भी इन विशेषताओं में सबसे अग्रणी हो गए हैं । ____ मैं आपसे कह रहा था, कि राजनीतिज्ञ अथवा धूर्त बाहर में अपने रूप का संगोपन कर लेता है, अपने को छपा लेता है, तो यह वर्तमान में जीवन-व्यवहार का उपशम है, वास्तविक उपशम नहीं है। यह उपशम तो भौर अधिक पतन का कारण है । साधना का उपशम इससे भिन्न है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003415
Book TitleAparigraha Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
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