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अपनी - अपनी योग्यता
सूर्य बिना किसी पक्षपात या संकोच के सभी को समान-भाव से प्रकाश देता है। दर्पण में सूर्य का केवल प्रतिबिम्ब पड़कर रह जाता है, अन्य कुछ नहीं होता। परन्तु सूर्यकान्त मणि सूर्य के प्रकाश को पाकर दूसरी वस्तु को जला देती है। इसमें सूर्य का क्या दोष ? अपनी - अपनी योग्यता है । महापुरुषों के सत्संग में बैठकर जिनमें श्रद्धा अथवा प्रेम नहीं है, वे दर्पण की भाँति कम लाभ उठाते हैं और श्रद्धा, प्रेम व भक्ति रखने वाले सूर्यकान्त मणि की भाँति अधिक लाभ उठाते हैं।
लक्ष्य की स्थिरता
मनुष्य ! कुछ करने से पहले अपना लक्ष्य स्थिर कर ले । तुझे कहाँ जाना है- कहाँ नहीं जाना है, क्या करना है--क्या नहीं करना है, क्या बनना है-क्या नहीं बनना है, जब तक तू इस प्रश्न का निर्णयात्मक उत्तर न दे सकेगा, तब तक तू कुछ भी नहीं कर सकेगा-कुछ भी न बन सकेगा! एक चित्रकार, जबकि अपनी तूलिका को हाथ में लेकर कोई सुन्दर चित्र अंकित करना चाहता है, तो वह पहले से ही अपने मन में कल्पना कर लेता है कि मुझे अमुक आकार को इस-इस प्रकार मूर्त रूप देना है ! कोई भी मूर्तिकार हथौड़ी और छैनी उठाकर ज्यों ही पत्थर के टुकड़े को हाथ में लेता है, त्यों ही वह पहले से को गई कल्पना की भाव - भंगिमा उसमें देखने लगता है। गाँव का अनपढ़ कुम्हार भी पात्र बनाने से पूर्व मन में यह धारणा स्थिर कर लेता है कि इस मिट्टी के गोलमटोल पिंड को अमुक पात्र - विशेष के आकार में ढालना है ! जीवन भी एक कला है। अतः वह भी अपेक्षा करता है कि आप उसे क्या रूप देना चाहते हैं ? लक्ष्य बाँध कर ही तीर फेंकिए।
अमर - वाणी
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