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कर्मयोगियों के लिए क्या दूर है ? कुछ नहीं ! बाप के कुएँ का आलस्य - वश खारा जल पीते रहने वाले पुत्र सपूत नहीं होते। सपूत वे हैं, जो मीठा जल पीते हैं, भले ही कितनी ही दूर से और कितनी ही कठिनाई से लाना पड़े।
वीर और कायर
वीर और कायर में क्या अंतर है ? बस, एक कदम का अंतर है, जहाँ वीर का कदम आगे की ओर बढ़ता है, कायर का कदम पीछे की ओर पड़ता है। वीर रणक्षेत्र में अपने पीछे आदर्श छोड़ जाता है, वह मर कर भी अमर हो जाता है । कायर मैदान से मुंह मोड़ कर भाग खड़ा होता है, और कुत्ते की मौत मरता है।
ओ पुरुषार्थी !
क्या तू पुरुषार्थी है ? यदि पुरुषार्थी है, तो फिर यह आलस्य कैसा ? यह अंगड़ाई - जंभाई कैसी ? तेरे लिए हिमालय ऊँचा नहीं है और न ही समुद्र गहरा है। यदि तू अपने अन्दर की शक्तियों को जागृत करे, तो सारा भूमण्डल तेरे एक कदम की सीमा में है। तू चाहे तो घृणा को प्रेम में, द्वष को अनुराग में, अन्धकार को प्रकाश में, मृत्यु को जीवन में, किं बहुना, नरक को स्वर्ग में बदल सकता है।
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अमर-वाणी
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