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________________ यौवन M सतत यौवन चिर युवा रहने के लिए यह आवश्यक है कि मन में कभी भी किसी भी प्रकार की दुर्बलता, निराशा, उत्साह - हीनता न आने दी जाए। मन की क्षीणता, शरीर की क्षीणता की अपेक्षा अधिक भयंकर होती है । नित्य नव - तरंगित रहने वाला उल्लास ही तो यौवन है और वह होता है मन में, शरीर में नहीं। चुनौती तूफान आ रहे हैं, तो आने दो ! मुझे क्या डर है ? मैं दीपक की कंपकंपाती लौ नहीं हूँ, जो साँस के झोंके से ही बुझ जाऊँ ? मैं तो वह जलता अंगारा हूँ, जो तूफानों के धक्के खाकर और अधिक प्रचण्ड होता है, आगे बढ़ता है, जलता है और जलाता है । कष्टों और आपत्तियों का मैं हृदय से स्वागत करता हूँ ! जितने भी कष्ट, दुःख, आपत्ति, असफलता आएँ, सहर्ष आएँ। मैं इन सबसे यथाअवसर विकास ही प्राप्त करूँगा, ह्रास नहीं। ४८ अमर - वाणी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003414
Book TitleAmar Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1988
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size6 MB
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