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रज - कण की प्यास बुझा दी, तो उसका जीवन सफल हो गया, वह धन्य हो गई।
उत्तम, मध्यम और अधम
संसार में मनुष्यों की तीन श्रेणियाँ हैं। अधम, मध्यम और उत्तम । आचार्य भर्तृहरि ने कहा है कि 'जो विघ्न के डर से काम का आरम्भ ही नहीं करते, वे अधम जन हैं। मध्यम पुरुष वे हैं, जो साहस के साथ काम तो आरम्भ कर देते हैं, परन्तु बाद में विघ्नबाधाओं के आ जाने पर प्रयत्न - विमुख हो जाते हैं-सब - कुछ छोड़छाड़ कर भाग खड़े होते हैं। प्रारब्ध कार्य को पूरा करने में कितनी ही बाधाएँ आएँ, संकट आएँ, फिर भी प्रयत्न-विमुख न होने वाले- आरम्भ को सफल अन्त में परिणत करने वाले, उत्तम पुरुष होते हैं। उत्तम पुरुष जब यह मान लेते हैं कि यह बात न्यायोचित है, अतः होनी ही चाहिए, तो उसे करने के लिए कृत-संकल्प हो जाते हैं और जब तक वह पूरी नहीं होती, तब तक कदापि प्रयत्न विमुख नहीं होते। हिमालय की चट्टानों को ठुकरा कर अलग फेंकना और अपने लक्ष्य के प्रति सतत गतिशील रहना ही उत्तम पुरुष का अमर आदर्श है।
मानव और महामानव
मानव और महामानव की कृति तथा उक्ति में महान् अन्तर होता है। मानव का जीवन-मन्त्र है, एक गुनी कृति और कई गुनी उक्ति । कभी-कभी तो कृति नहीं, केवल उक्ति ही उक्ति ! और महामानव का जीवन-मंत्र होता है, महान् कृति और अल्प उक्ति । कभी-कभी तो उक्ति नहीं, केवल कृति ही कृति ! उक्ति और कृति में अभेद साधना ही महत्ता का प्रथम लक्षण है।
मानवता ।
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