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________________ दोहन स्वर्ग के असंख्य देवता भी मन के लँगड़े को अपने पैरों पर खड़ा नहीं कर सकते । आग लगाने वालों के भाग्य में आग है और तलवार चलाने वालों के भाग्य में तलवार है । जो दूसरों की राह में काँटे बिछाते हैं, उन्हें फूलों की सेज कैसे मिलेगी ? आज के दुःखों, कष्टों और संघर्षों का मूल कारण यह है कि मनुष्य अपना बोझ खुद न उठाकर, दूसरों पर डालना चाहता है । विज्ञान की तेज चाकू से प्रकृति की छाती को चीर कर क्या निकाला ? विष, और विष ! मनुष्य चला था अमृत की तलाश में; पर ले आया विष ! जीवन से अलग हटा हुआ धर्म, अधर्म है और आचार दुराचार | धर्म और आचार का प्रत्येक स्वर जीवन - वीणा के हर साँस के तार के साथ कृत रहना चाहिए । विचार ही मनुष्यता है और अविचार ही पशुता है । जीवन क्या है ? परस्पर विरोधी तूफानों का संघर्ष ! जो इस संघर्ष में अड़ा रहा, बढ़ता रहा, भूला भटका नहीं; वही शेर है, बाकी सब गीदड़ ! हंस मोती चुगते हैं, और काग? तुम निर्णय कर लो कि तुम्हें हंस बनना है या काग ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003414
Book TitleAmar Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1988
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size6 MB
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