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जीवन का कण • कण मधुमय हो, मधु - रस क्षिति पर बरसाओ। अन्दर में अपने प्रसुप्ततम - भाव सुदिव्य जगाओ ।
रोता आया मानव जग में, अच्छा हो अब हंसता जाए। और, दूसरे रोतों को भी, जैसे बने हंसाता जाए ॥
- उपाध्याय अमरमुनि
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