SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 172
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ और सोने - चाँदी के गहनों से जीतना चाहता है ? वह गृह - पत्नी - है, उसे यह सब नहीं चाहिए, उसे चाहिए प्रेम, अधिकार, आदर और गृहस्थी होने का स्वाभिमान ! यह ठीक है, कि वह आवश्यकता पड़ने पर सुन्दर से - सुन्दर गहने और वस्त्र मांग सकती है । वह सौन्दर्य की पुजारिन है, उसे सुन्दरता से प्रेम है । परन्तु वह, वह भी है, जो आवश्यकता पड़ने पर एक क्षण में सब कुछ निछावर भी कर सकती है, ठुकरा भी सकती है। याद है, सीता यह सब ठुकरा कर एक दिन नंगे पैरों छाया की तरह राम के पीछे-पीछे किस प्रकार वन - यात्रा को निकल पड़ी थी ? नारी का आदर्श अतीत श्रमण भगवान् महावीर की अमृत वाणी का रस का सबसे ज्यादा उन बहनों ने पान किया, जो सामाजिक दृष्टि से पिछड़ी हुई थीं और जिन्हें हम अज्ञान के अंधकार में रहने को मजबूर करते चले आ रहे थे । वास्तव में वे शक्तियाँ रूढ़ियों के शिला - खण्डों से दबी हुई थीं, परन्तु ज्यों ही उन्हें उभरने का अवसर मिला, भगवान् महावीर की दिव्य - देशना का प्रकाश मिला, त्यों ही वे एक बहुत बड़ी संख्या में राजमहलों को छोड़कर साधना की कांटों भरी राह पर बढ़ चलीं । - वे संसार की विपरीत परिस्थतियां एवं विपत्तियाँ से टक्करें लेती हुई, भयानक से भयानक सर्दी-गर्मी और वर्षा की यातनाएँ झेलती हुई भी श्रमण भगवान् महावीर का मंगलमय संदेश घर घर में पहुंचाती रही । और, जिनके हाथों ने देना - ही - देना जाना था, वे ही राज- रानियाँ अपनी प्रजा के सामने, यहां तक कि झोपड़ियाँ में भिक्षा के लिए घूमती थीं और साथ में भगवान् महावीर की वाणी का अमृत बाँटती थी । * नारी 1 - Jain Education International For Private & Personal Use Only १४७ www.jainelibrary.org
SR No.003414
Book TitleAmar Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1988
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy