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विश्व - विद्यालयों को ऊँची - से - ऊँची उपाधियाँ प्राप्त कर लेना नहीं है । शिक्षा का अर्थ है, आत्मा का विकास, जीवन का विकास समाज का विकास, और समूची मानवता का विकास ।
पाण्डित्य पाण्डित्य लम्बे - चौड़े पोथी - पन्नों में नहीं है, वह है जीवन को अनुभूति में, यदि कोई सहृदय उसे पा सके तो।
विद्या का उद्देश्य
आचार्य मनु कहते हैं कि “सा विद्या या विमुक्तये ।' विद्या वह है, जो भौतिक वासनाओं से तथा अन्ध - परम्पराओं एवं कुप्रथाओं से मुक्ति दिला सके । स्वतन्त्र रूप से जनहित के सम्बन्ध में सोचना और करना ही एकमात्र विद्या का पुनीत उद्देश्य है।
सच्ची विद्या
सच्ची विद्या जीवन में आनन्द लेने की कला सिखाती है; मजदूर की तरह नहीं, स्वामी की तरह श्रम करना सिखाती है । प्रतिकूल परिस्थिति में भागना नहीं, अपितु उसको अपने अनुकूल बना लेना ही जीवन की सच्ची विद्या है।
ज्ञान या अज्ञान !
आज के मनुष्य ने रेशम के कीड़े की भाँति अपने ऊपर ज्ञान के नाम से अज्ञान का जाल गूथ रक्खा है, जिसे काटकर वह बाहर नहीं निकल सकता ?
विज्ञान का फल
आज की मानव - जाति मौत से खेल रही है, आग पर चल रही
शिक्षा:
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