________________
तब तक यह निश्चित है कि संसार में शान्ति का राज्य किसी दशा में भी कायम नहीं हो सकेगा।
नया और पुराना
क्या आप को पुराने का मोह है, तो पुराने कटे - फटे चिथड़े पहनो, पुरानी सड़ी - गली, वासी रोटियाँ खाओ। पुराने टूटे-फूटे ध्वस्त खंडहरों में रहो। क्या आपको नये का मोह है ? यदि आप को नये का मोह है, तो आम की नई कच्ची केरियाँ चूसो, नए अंकुरित वृक्ष की शीतल छाया में विश्राम करो, बिल्कुल नएआज के जन्म पाए बच्चे को दूकान और दफ्तर का काम सौंप दो। कोई भी विचारक नये - पुराने के मोह में नहीं पड़ता है। वह तो एक ही बात देखता है, वस्तु की द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव के अनुसार उपयोगिता !
पुरानी, किन्तु आज के युग में अनुपयोगी परम्पराओं एवं रूढ़ियों से चिपटे रहना धर्म नहीं है। धर्म है, उनको नष्ट कर नई उपयोगी परम्पराएँ चालू करना। क्या कभी पुराने-से-पुराने घरों को जनहित की दृष्टि से गिराना धर्म नहीं है ?
आध्यात्मिक दरिद्रता
किसी भी समाज और राष्ट्र का पतन धन-जन की दरिद्रता के कारण नहीं होता। भारत के निवासियो ! तुम भले ही अपना और सब-कुछ खो देना, परन्तु अपने परम्परागत आध्यात्मिक वैभव को खोकर आध्यात्मिक दरिद्र न बन जाना।
समाज:
१३७
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org