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कुत्ता था। उसने चीनी के घड़े में मुह डाल दिया। इतने में खड़खड़ाहट की आवाज हुई। कुत्ते ने भागना चाहा। इसी गड़बड़ में घड़ा फूट गया । घड़े की गर्दनी कुत्ते के गले में रह गई । कुत्ते को कष्ट पाते देख कर दयाखु मनुष्य हाथ में लाठी लेकर, इसीलिए कुत्ते के पीछे दौड़ा कि यदि लाठी से घड़े की गर्दनी तोड़ दी जाए, तो कुत्ता कष्ट से बच जाएगा। कुत्ते ने अपने पीछे लाठी लिए दौड़ते हुए आदमी के असली उद्देश्य को न समझ कर उलटा यह समझा कि यह मुझे मारने को दौड़ रहा है। वह भौंकने लगा, तथा और भी जोर से भागने लगा। बात कड़वी अवश्य है, परन्तु आज तक अबोध जनता अपने उद्धारक महापुरुषों के साथ यही कुत्ते-जैसा व्यवहार करती आ रही है।
धर्म और समाजवाद सच्चा मनुष्य वही है, ओ अपने परिवार, पड़ौस, समाज और राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों को ईमानदारी से पूरा करता है। आस-पास के किसी भी जीवन की किसी भी समय, किसी भी तरह की उपेक्षा न हो, यह सामाजिक सन्तुलन है, यही भारत की पुरानी भाषा में धर्म है और आज की नई भाषा में समाजवाद ।
नैतिकता का आधार आज सब ओर से पुकार आ रही है कि नैतिकता नहीं है, ईमानदारी नहीं है। मैं कहता हूँ, नैतिकता और ईमानदारी हो,तो कैसे हो ? जब कि यहाँ त्याग को भावना लुप्त होती जा रही है ।
जनता की मनोवृत्ति __ महान् पुरुषों की जीभ आसमान पर है और दुनियादार लोगों के कान होते हैं जमीन पर । अब समस्या यह है कि महापुरुषों की वाणी को दुनियादार लोग सुनें, तो कैसे सुनें ?
समाज:
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