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________________ ओर ध्यान क्यों देते हो ? क्यों कुढ़ते हो ? अपने अन्दर में तलाश करो, यदि तुम्हारे अन्दर सचमुच ही कोई निन्दा - योग दोष हो, तो उसे छोड़ दो, अन्यथा प्रसन्न भाव से निर्भय, निर्द्वन्द्व होकर विचरण करो । किसी के कहने से तुम्हारा कुछ नहीं बिगड़ता बनता है । w श्रम आज का मनुष्य विश्राम चाहता है, काम से जी चुराता है । समाज और राष्ट्र में सब ओर दरिद्रता का जो नग्न नृत्य हो रहा है, वह इसी विश्राम - वृत्ति के कारण है । उत्पादन का शोर है, परन्तु जहाँ खटिया पर पड़े - पड़े ऊँघने तथा खर्राटे लेने वाले लोग हों, वहाँ उत्पादन बढ़े, तो कैसे बढ़े ? उत्पादन, आखिर मनुष्य के हाथ में जन्म लेता है । मनुष्य जब तक जिए, तब तक श्रम करता रहे, श्रम करता हुआ ही मरे । श्रम जीवन है और विश्राम मरण । जीवन का एक क्षण भी व्यर्थ आलस्य में नहीं जाने देना चाहिए । - सेवा आपका हृदय स्फटिक जैसा स्वच्छ हो। उसमें अजस्र गति से करुणा और सेवा की पवित्र धारा बहती रहनी चाहिए । निष्काम सेवा में जो रस है, आनन्द है, वह अन्यत्र कहाँ है ? मन के रोग हिंसा, असत्य, घृणा, ईर्ष्या, द्व ेष, दंभ, लोभ, मोह और अहंकार आदि मन तथा बुद्धि के रोग हैं । Jain Education International जीवन नौका जीवन की नौका डूब जाएगी, यदि उसके छेदों को बंद न चरित्र - विकास के मूल तत्त्व : १२३ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003414
Book TitleAmar Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1988
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size6 MB
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