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जब तक आसक्ति दूर न हो, निष्काम भाव न आए, तब तक त्याग विडम्बना है"त्याग न टिके रे, वैराग्य बिना"
मन की सीमा बाँधो
मन को खुला छोड़ दोगे, तो वह कहीं जाकर न रुकेगा। उसकी सीमा कहीं न आएगी। आत्मा द्वारा उसकी सीमा बाँधने का प्रयत्न करो। जो अपने मन की सीमा नहीं बाँध सके, वे रावण, दुर्योधन, कंस और कुणिक हुए। जिन्होंने सीमा बाँध ली, वे महावीर, बुद्ध और गाँधी हुए।
दान
जितना अधिक आपको मिले, उतना ही अधिक तीव्र गति से आप दूसरों को दे डालिए। यह दिव्य सिद्धान्त ही आस - पास के व्यक्ति, समाज और राष्ट्र के अभाव-ग्रस्त जीवन को मालामाल कर देता है, अन्धकार को प्रकाश में बदल देता है ।
उक्त प्रसंग को लेकर किसी पुराने मनीषी ने भी कहा है कि घर में लक्ष्मी बढ़ने लगे और नाव में पानी बढ़ने लगे, तो चतुरता का काम यह है कि उसे दोनों हाथों से उलीचा जाए। नाव के पानी की तरह संग्रह एक दिन भार बन जाता है, और वह भार मानव-जीवन की तैरती हुई नाव को एक दिन सहसा डुबो देता है
"पानी बाढ़े नाव में, घर में बाढ़े दाम ।। दोनों हाथ उलीचिये, यही सयानो कान ॥"
निन्दक नियरे राखिए
तुम्हारी यदि कोई निन्दा करता है, तो करने दो। तुम उसकी
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अमर - वाणी
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