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अधर्म
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क्या यह भी धर्म है ?
मनुष्य ! तेरा धर्म तुझे क्या सिखाता है ? क्या वह मासूम बच्चों को शस्त्र से घायल करना सिखाता है ? बहन - बेटियों की इज्जत लूटना सिखाता है ? किसी का गला घोंटना सिखाता है ? किसी के घर में आग लगाना सिखाता है ? यदि ऐसा है, तो तू उस धर्म को ठुकरा दे, ठोकर मार कर चूर-चूर कर दे । इस प्रकार के धर्म को एक पल भी जिन्दा रहने का अधिकार नहीं है।
सज्जन और दुर्जन
जो व्यक्ति चन्दन के समान दूसरों के सन्ताप को दूर करने वाले हैं, वे सचमुच चन्दन ही हैं। इस संसार में वे ही कर्मशील सज्जन धन्यवादाह हैं, जो परोपकार के लिए भयंकरतम कष्ट सहने को तैयार रहते हैं। और, समय पड़ने पर अपने प्राणों को तृण के समान निछावर कर देते हैं। संतों की भाषा में “वह मनुष्य पापी है, दुर्जन है, जो समर्थ होकर भी आर्त - जनों का दुःख दूर नहीं करता।"
अधर्म।
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