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________________ हवाओं से बचाती है, मोह एवं घृणा से मुक्ति दिलाती है ? यदि नहीं, तो फिर आपको विचारना चाहिए कि भूल कहाँ है ? धर्म और सम्प्रदाय सम्प्रदाय और धर्म में बड़ा भारी अन्तर है । सम्प्रदाय शरीर तो धर्म आत्मा है, सम्प्रदाय सरोवर है, तो धर्म जल है, सम्प्रदाय फूल है, तो धर्म सुगन्ध है, सम्प्रदाय फल है, तो धर्म रस है । धर्मशून्य सम्प्रदाय मानव जाति के लिए विष है, उसके त्याग में ही संसार का कल्याण है । धर्म और जीवन वह जल धर्म और कर्तव्य वार - त्यौहार की चीज नहीं है, जो अमुक दिन इष्ट मित्रों के साथ बैठकर मिठाई की तरह चखा जाए तो जीवन में नित्यप्रति काम आने वाला अन्न-जल है । अन्न भी क्या, वह तो स्वच्छ हवा है, जिसके बिना क्षण भर भी जीवित नहीं रहा जा सकता । भगवान् सत्य की पूजा नित्य ही करनी चाहिए । जो लोग सत्य की पूजा के लिए पूर्णिमा या अमावस्या, रविवार या मंगलवार, अथवा शुक्रवार की बात सोचते हैं, वे सत्य की पूजा नहीं, सत्य की विडम्बना ही करते हैं । धर्म और अधर्म - १०६ Jain Education International अन्तर्मुखी चेतना धर्म है और बहिर्मुख चेतना अधर्म ! यह एक संक्षिप्त सूत्र है, और इसका विस्तृत भाष्य या महाभाष्य है कि यदि मनुष्य अहिंसा, सत्य, ब्रह्मचर्य, दया, करुणा, क्षमा, शील, सन्तोष, तप, त्याग आदि आत्म-भाव की ओर अग्रसर है, तो वह धार्मिक है | और यदि वह विषयाभिमुख होकर क्रोध, मान, माया, लोभ, मोह, राग, द्वेष आदि कषाय-भाव की ओर अग्रसर है, तो अमर वाणी - For Private & Personal Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.003414
Book TitleAmar Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1988
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size6 MB
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