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है। वह तो उसकी संपत्ति है, जो इसे सच्चे मन से अपनाए, भले ही वह ब्राह्मण हो या शूद्र, हिन्दू हो या मुसलमान, भारतवासी हो या और कहीं का निवासी । जैनत्व पर मानव-मात्र का एक समान अधिकार है।
जैन - धर्म
जैन - धर्म, मानव - धर्म है । वह मानवता के पथ पर चलने के लिए प्रेरणा देता है। और, वह मानवता क्या है ? मनुष्य में, मनुष्य बनकर रहने की योग्यता और कला !
जैन - संस्कृति और पुरुषार्थ
जैन-संस्कृति पुरुषार्थ-प्रधान संस्कृति है । हताश और निराश व्यक्तियों के लिए उसका सन्देश है कि क्या भाग्य के गीत गा रहे हो ? भाग्य है क्या चीज ? अतीत पुरुषार्थ का वर्तमान परिणाम ही तो भाग्य है ! भाग्य के चक्कर से निकलकर कुछ कर्म करो, कुछ पुरुषार्थ करो। अन्यथा जीवन पर एक असह्य भार लद जाएगा, जो मनुष्य को कुचल कर मिट्टी में मिला देगा।
साम्य - योग
संसार में जितने भी सुखोपभोग के साधन हैं, उन सब में सभी मनुष्यों का बराबर का हिस्सा है। किसी एक व्यक्ति, जाति, समाज या राष्ट्र को उस पर एकाधिपत्य जमाने का कोई अधिकार नहीं है। हर चीज का न्यायपूर्वक समुचित बँटवारा करने पर ही पृथ्वी पर अखण्ड शान्ति का स्वर्ग स्थापित हो सकता है । बँटवारा करते समय हर मनुष्य को हमें अपना सगा भाई समझना है, विचारों में भी और व्यवहार में भी। अकेले बैठ कर खाना, महापाप है, घोर
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अमर - वाणी
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